राष्ट्रीय (26/03/2015)
तीनों नगर निगमों के सदन के नेताओं का संयुक्त संवाददाता सम्मेलन
दिल्ली सरकार द्वारा संवैधानिक निकायों के अधिकारों का हनन निगमों की वित्तीय संकट के लिए दिल्ली सरकार जिम्मेदार दिल्ली की तीनों नगर निगमों के सदन के नेताओं, सुश्री मीरा अग्रवाल, राधेश्याम शर्मा तथा राम नारायण दूबे ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री, अरविंद केजरीवाल के उस बयान जिसमें उन्होंने तीनों निगमों को अपने अधीन लाकर लाभ में चलाने की बात कही थी का जोरदार खंडन करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री को शायद यह भी ज्ञात नहीं की स्थानीय निकाय सदैव विभिन्न नागरिक सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए उत्तरदायी रहती है। जिसके बदले में उन्हें कोई राशि अथवा शुल्क प्राप्त नहीं होता बल्कि ये सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार अथवा केन्द्रीय सरकार अनुदान अथवा विभिन्न रूपों में सहायता राशि उपलब्ध कराती हैै। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनकी खुद की राज्य सरकार जो की सदैव ठीक चल रही थी वह भी अब घाटे में दिखाई जा रही है। वहीं राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही बिजली पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए भी अभी से दूसरे राज्यों व केन्द्र सरकार के खिलाफ इशारे करने प्रारंभ कर दिए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली सरकार अपने द्वारा गठित वित्तीय आयोग की सिफारिशें भी लागू नहीं करती इससे उनके मंशा पर प्रश्नचिन्ह लगता है। दिल्ली के तीसरे वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुरूप निगम को 5.5 प्रतिशत के अनुपात में ग्लोबल शेयर मिलना चाहिए था जिसे घटाकर 4 प्रतिशत कर दिया गया। अब चैथे वित्त आयोग की सिफारिशें अभी तक सदन पटल पर नहीं रखी गई है, जिसमें ग्लोबल शेयर का स्थानीय निकायों को 12.5 प्रतिशत की दर से हिस्सा तथा शिक्षा पर किए गए खर्च का शत् प्रतिशत दर से भरपाई करने की सिफारिश की गई है। यह सिफारिशें संविधान के 74वें संशोधन की भावनाओं के अनुरूप स्थानीय निकायों को आत्म निर्भर व स्वायत्त बनाने की दिशा में है। किन्तु दिल्ली सरकार द्वारा संविधान के इस संशोधन की अनदेखी करते हुए तथा नागरिकों के हितों को नजर अंदाज करते हुए राजनीतिक कारणों एवं निगमों पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए इन्हें लागू नहीं किया गया है। यह किसी भी सरकार द्वारा स्थानीय निकाय का खुला शोषण है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि दिल्ली सरकार की निगम कार्यों में इतनी दखल अंदाजी बढ़ चुकी है कि अधिकारी अधिकतर दिल्ली सरकार के द्वारा आयोजित बैठकों में भाग लेने तथा विभिन्न वांछित रिपोर्टो को तैयार करने में व्यस्त रहते हैं, जिसके कारण निगम के अपने कार्य प्राथमिकता खो चुके हैं। यह स्पष्ट रूप से देश की राजधानी जो कि लगभग 1400 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में रहने वाले नागरिकों को सुविधा उपलब्ध कराती है, उसके अधिकारो एवं स्वायतता का हनन है। उत्तरी दिल्ली नगर निगम की सदन की नेता, सुश्री मीरा अग्रवाल ने इस संदर्भ में कहा कि दिल्ली सरकार ने जब से दिल्ली की नगर निगमों को अपने अधीन करने के प्रयास प्रारंभ किए है तब से वित्तीय अंकुश लगाते हुए विभिन्न मदों में राशि को रोक कर निगमों को पंगु बनाने का निरंतर प्रयास किया जा रहा है। निगम चाहते हुए भी स्वायत्ता से कार्य नहीं कर पा रही है, चूकिं दिल्ली सरकार आज भी नागरिकों को संतोषजनक रूप में सेवाऐं प्रदान करने में असफल है। अब तक निगम स्वायत्त रूप से निर्णय लेेते हुए नागरिकों को सेवाएंे उपलब्ध कराने में सफल रही है लेकिन समस्याएं तभी से उत्पन्न हुई है जब से निगम की स्वायत्ता को भंग करते हुए इसके अधिकारों हनन कर दिल्ली सरकार अपने अधीन करने में लगी हुई है। दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के नेता सदन, श्री राधेश्याम शर्मा ने कहा दिल्ली सरकार जन हित को पूरी तरह से नजर अंदाज करते हुए नागरिक सेवाओं में जुड़े हुए संस्थानों के पानी के कनेक्शन काट रही है तथा जल आपूर्ति भी व्यावसायिक दरों पर कर रही है। जबकि निगम अपने संस्थानों के द्वारा केवल और केवल जनहित से जुड़े कार्यों को नागरिकों को प्रदान करता है। निगमों द्वारा किए जा रहे कार्य कहीं न कहीं केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों के द्वारा किए जाने वाले कार्यो का ही निर्वहन है जिसकी एवज में हमें अनुदान अथवा सहायता राशि उपलब्ध कराई जाती है किन्तु राज्य सरकार का यह नकारात्मक रवैया नागरिक सेवाओं पर प्रत्यक्ष रूप से दुष्प्रभाव डालेगा। पूर्वी दिल्ली नगर निगम के सदन के नेता श्री राम नारायण दूबे ने दिल्ली सरकार पर सीधे रूप से असहयोग का आरोप लगाते हुए कहा कि नगर निगमों के इस वित्तीय संकट के लिए पूरी तरह से दिल्ली सरकार जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि यदि दिल्ली सरकार अपने संस्थानों पर देय संपत्तिकर का भुगतान भी ठीक से कर दे तो तीनों निगमों की वित्तीय स्थिति में कुछ सुधार आ सकता है। जब सरकार ही अपने दायित्वों का निर्वहन स्थानीय निकाय के प्रति ठीक से नहीं करेगी तो व्यवस्था चरमराना निश्चित है। तीनों नेताओं ने मुख्यमंत्री के इस कल के बयान को बहुत ही गैरजिम्मेदाराना एवं अज्ञानता पूर्ण बताते हुए कहा कि मुख्यमंत्री को इस तरह की बात करना शोभा नहीं देता, इससे सत्ता में आने का उनका लालच साफ दिखाई देता है। पहले मुख्यमंत्री बनते ही वे प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में लगे और जब वहां बात नहीं बनी तो दिल्ली नगर निगम के अधिकारों को हनन की हल्की राजनीति करने लगे जिसके कारण न केवल जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के अधिकारों का हनन है, बल्कि दिल्लीवासियों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इससे दिल्ली सरकार की मंशा पूरी तरह से स्पष्ट होती है कि वे नागरिकों को बेहतर रूप से सुविधाऐं देने की बजाय संवैधानिक निकायों का शोषण एवं उनके अधिकारों का हनन करने में तत्पर रहेंगे। |
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