राष्ट्रीय (04/01/2015) 
निकोलस की सूझ-बूझ

द्वितीय विश्व युद्ध के समय मित्र-राष्ट्र संगठित रूप से जर्मनी से टक्कर ले रहे थे। 24 मार्च 1944 को ब्रिटेन के सार्जेंट निकोलस ने बर्लिन पर बमबारी करने के लिए उड़ान भरी। बमबारी के बाद जब वह वापस लौट रहा था, तभी शत्रु सेना की विमानभेदी तोपों ने उसके जहाज पर आग उगलनी शुरू कर दी। धीरे-धीरे आग पूरे विमान में फैलने लगी। निकोलस ने तुरंत वायरलैस से अपने कप्तान से सहयोग की मांग की। लेकिन कप्तान उसकी बात सुनकर बोला, ‘इस समय तो हम लोग खुद मुसीबत में हैं और सहायता नहीं कर पा रहे, लेकिन तुम इस मुसीबत में साहस का परिचय देकर अपनी मदद खुद ही करने की कोशिश करो।

बस, इसके साथ ही संपर्क टूट गया। निकोलस बिना समय गंवाए पैराशूट निकालने के लिए केबिन की ओर बढ़ा, किंतु पैराशूट तो जलकर राख हो चुका था। यह देखकर निकोलस ईश्वर को याद करते हुए फौरन विमान से कूद पड़ा। लेकिन जमीन पर आते ही वह बेहोश हो गया। चेतना लौटी तो उसने खुद को बर्फ से ढका हुआ पाया। पैर की हड्डियों में चोट के कारण वह उठ भी नहीं पा रहा था। उस समय रात के दो बज रहे थे। उसे अनुमान तो था कि यह शत्रु का क्षेत्र होगा, लेकिन बचने के लिए उसने अपनी कमर में बंधी सीटी बजा दी। सीटी सुनते ही शत्रु सैनिकों ने उसे बंदी बना लिया। निकोलस ने शत्रु सेना के अधिकारियों को सारा किस्सा बताया। विमान के अवशेष देखने के बाद शत्रु-पक्ष के लोग भी निकोलस की हिम्मत और समझदारी पर दंग रह गए। युद्ध समाप्त होने पर सभी युद्धबंदियों को रिहा कर दिया गया। इस प्रकार निकोलस सकुशल इंग्लैंड पहुंच गया।

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