राष्ट्रीय (12/12/2014)
कवि दीपक शर्मा की कलम से
दिल की गीली ज़मीं पर ख्वाबों का बिस्तरा कोसो की दूरियां ख़त्म हो गई लम्हात में महकता रहा तमाम दिन मैं देख ख्वाब एक देखी गई है उसमें बहुत इंसानियत की लौ चलने दो ज़रा हवा ख़ुद ही हो जायेंगे बेनकाब आदत ये हुमें आपकी कतई अच्छी नहीं लगती कोई भी तो नहीं जहान में समझा है तुझे "दीपक" |
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