राष्ट्रीय (28/10/2014) 
भारतीय नेता जो एक 'मकसद' की खातिर रह गए कुंवारे!
लखनऊ. भारत में ऐसे राजनेताओं की कमी नहीं है, जो आजीवन कुंआरे रहे। देश सेवा में आगे रहने वाले ये नेता एक खास मकसद (सामाजिक, राजनीतिक) के लिए काम करते रह गए। इनमें प्रखर समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी, यूपी की पूर्व सीएम मायावती, बीएसपी के संस्थापक कांशीराम, आरएसएस के प्रचारक रहे और एक समय बीजेपी के थिंक टैंक कहे जाने वाले गोविंदाचार्य, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, तमिलनाडु की पूर्व सीएम जयललिता, बीजेपी सांसद और केंद्रीय मंत्री उमा भारती और बीजेपी नेता संजय जोशी मुख्य हैं। 


देश सेवा जैसे मकसद के लिए काम कर रहे इन नेताओं ने भारतीय राजनीति पर अपनी गहरी छाप छोड़ी है। जनता के हित के लिए लंबा आंदोलन करने वाले इन नेताओं ने खुद को समाजसेवा के लिए समर्पित कर दिया। आज जहां राजनीति में वंशवाद और सामंतवाद का प्रभाव बढ़ता चला जा रहा है, खास बात अविवाहित रहे इन नेताओं पर इसका आरोप नहीं लगाया जा सकता।
 
भारतीय राजनीति में वंशवाद को लेकर हर जगह चर्चा होती है। कांग्रेस में जहां गांधी परिवार, सपा में मुलायम सिंह यादव परिवार, शिरोमणि अकाली दल में बादल परिवार, राजद में लालू यादव, रालोद में अजित सिंह परिवार, जम्मू कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस का अब्दुल्ला परिवार, डीएमके में करुणानिधि, ठाकरे की शिवसेना, चौटाला का इंडियन नेशनल लोकदल, पटनायक का बीजद, सईद की पी.डी.पी. और पासवान की लोजपा अपनी शैली में पति-पत्नी, पुत्र-पुत्री और परिवार प्रेम में विश्वास करते हैं।
 
बीजेपी में भी कई बड़े नेता वंशवाद से ऊपर नहीं उठ पाए। इसमें यूपी में राजनाथ सिंह, लालजी टंडन, मेनका गांधी, कल्याण सिंह, राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया, हिमाचल में धूमल और महाराष्ट्र में प्रमोद महाजन की बेटी कुछ ऐसे नाम हैं जो वंशवाद से ऊपर नहीं उठ पाए।
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