दो
दशक से
अधिक समय
से विवाद
में रह
रहे दिल्ली
किराया कानून
की वजह
से रोज़
दिल्ली में
अनेक दुकानदारों
को अपनी
बरसों पुरानी
दुकानों से
बेदखल किये
जाने और
केंद्र सरकार
के इस
मामले में
तुरंत सीधे
हस्तक्षेप की मांग को लेकर
आज दिल्ली
के जंतर
मंतर पर
दिल्ली के
सभी भागों
के हजारों
दुकानदारों ने एक धरना देते
हुए कहा
की बेहद
अजीब बात
है की
अर्थव्यवस्था और देश के विकास
में व्यापारियों
को देश
की राजनैतिक
जमात रीड
की हड्डी
बताती है
लेकिन देश
में सबसे
ज्यादा उपेक्षा
व्यापारियों की ही होती है
! धरने का
आयोजन कॉन्फ़ेडरेशन
ऑफ़ आल
इंडिया ट्रेडर्स
(कैट) के
बैनर तले
हुआ जिसमें
फेडरेशन ऑफ़
दिल्ली ट्रेड
एसोसिएशन, दिल्ली राज्य व्यापार संगठन,
दिल्ली व्यापार
महासंघ सहित
दिल्ली के
200 से अधिक
प्रमुख व्यापारी
संगठनों के
लोगो ने
भाग लिया
! धरने की
अध्यक्षता कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया
ट्रेडर्स ( कैट) के दिल्ली प्रदेश
अधयक्ष,
श्री रमेश खन्ना ने की
!
धरने में शामिल व्यापारी बेहद आक्रोश में होकर दुकान हमारी- पैसा हमारा, फिर भी दुकानदार बेचारा, पगड़ी देकर दुकानें ली हैं -व्यापार किया है अपराध नहीं, जो नहीं करे व्यापारी का मान -उसका कैसे करें सम्मान" जैसे नारे लगाकर अपना रोष प्रदर्शित कर रहे थे ! व्यापारियों की मांग है की गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों के किराया कानून में कट ऑफ डेट के प्रावधान की तरह दिल्ली में भी किराया कानून में 1 .1 .1996 की कट ऑफ़ डेट घोषित की जाए जिससे दिल्ली में पुराने किरायेदार जिन्होंने पगड़ी देकर दुकानें ली हैं को संरक्षण दिया जाए ! उन्होंने यह भी मांग की है की उच्चतम न्यायालय की 5 न्यायधीशों की एक बेंच द्वारा ज्ञान देवी के मुकदमे में वाणिजयिक और रिहायशी सम्पत्तियों के बीच के अंतर को मान्यता दी जाए ! उन्होंने ने यह भी मांग की है की वास्तविक जरूरत के आधार पर दशकों पुरानी दुकानों को खाली कराया जा रहा है जबकि न्याय के प्राकृतिक सिद्धांत के अनुसार वास्तविक जरूरत एक तरफ़ा नो होकर किरायेदार की भी वास्तविक जरूरत को समझा जाना चाहिए क्योंकि एक दुकान से अनेक लोगों और उनके परिवारों की रोजी रोटी चलती है !
धरने में शामिल व्यापारी नेताओं ने कहा की आजादी के बाद जिस समय व्यापारियों ने दुकानें किराये पर ली थी उस समय मकान मालिकों को संपत्ति की कुल कीमत के रूप में राशि दी थी जिसे पगड़ी कहा गया क्योंकि उस समय के कानून के अनुसार माकन मालिक अपनी संपत्ति को बेच नहीं सकते थे और न ही बंटवारा कर सकते इसीलिए उस संपत्ति का किराया बहुत ही मामूली रखा गया ! मकान मालिकों ने पगड़ी से प्राप्त राशि से और संपत्तियां खरीदी और इस तरह बड़ी मात्रा में आर्थिक लाभ कमाया ! यह उसी तर्ज़ पर था जिस तरह डीडीए ने उस समय संपत्ति की कीमत तो ली लेकिन संपत्ति लीज पर दी और प्रतिवर्ष लीजहोल्डरों से लीज राशि वसूल की और अब ऐसी सम्पत्तियों को फ्रीहोल्ड करके लीज़होल्डर को मालिकाना हक़ दिया जा रहा है !
व्यापारी नेताओं ने कहा की बेहद अजीब बात है की वर्ष 2008 से पहले दिल्ली में किसी मकान मालिक की कोई वास्तविक जरूरत नहीं थी लेकिन 2008 से लेकर अब तक अचानक वास्तविक जरूरत के आधार पर दुकानें खाली कराने की बाढ़ सी आ गयी है इस से साफ़ पता चलता है की संपत्ति की बढ़ती कीमतों को देख कर ही जमे जमाये दुकानदारों को उनकी दुकानों से बेदखल किया जा रहा है !
व्यापारी नेताओं ने कहा की आजादी के बाद से लेकर वर्ष 1980 तक दिल्ली में व्यापारिक बाजार काफी कम थे ! दिल्ली में व्यापार बढ़ाने की दृष्टि से व्यापारियों ने उस समय पगड़ी देकर किराये पर दुकानें लेकर दिल्ली के अलग अलग भागों में अपनी मेहनत और अपने पैसे से दुकाने चलायीं और मार्किट बनी जिस के कारण ही उस जगह की गुडविल भी बनी और सम्पत्तियों की कीमतें बढ़ने लगी ! वर्ष 2007 में सीलिंग के मामले में उच्चतम न्यायलय में चल रहे एक मामले में शहरी विकास सचिव ने एक हलफनामा दाखिल कर इस बात को स्वीकार किया की गत चार दशकों में सरकारी एजेंसियां दिल्ली में कुल 16 प्रतिशत व्यावसायिक क्षेत्र ही विकसित कर पाईं ! इस से यह स्पष्ट है की बाकी 84 % व्यावसायिक क्षेत्र व्यापारियों ने अपनी मेहनत से दिल्ली में विकसित किया और अब दिल्ली के व्यापारियों को दुकाने खाली करने को कहा जा रहा है ! इस से न केवल व्यापरियों बल्कि उन पर आश्रित कर्मचारियों की रोजी रोटी के लिए भी नेक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है !
दिल्ली में किराया कानून से लगभग न केवल 5 लाख व्यापारी बल्कि 20 लाख से अधिक वो लॉज जो अपनी रोजी रोटी के लिए इन दुकानों पर आश्रित हैं सीधे तौर पर प्रभावित होंगे इन दुकानों में मोटे तौर पर 1 .5 लाख व्यापारी शहरी क्षेत्र में, 75 हजार कमला नगर और उत्तरी दिल्ली में , 1 लाख पश्चिमी दिल्ली में, 50 हजार दक्षिणी दिल्ली में, 50 हजार मध्य दिल्ली में और लगभग 1 लाख यमुना पार में हैं जिनके सर पर किराये की दुकानें खाली करने के तलवार लटक रही है !
व्यापारियों ने केंद्रीय शहरी विकास मंत्री श्री वेंकैय्या नायडू से आग्रह किया है की वो इस मामले में दखल दें और दिल्ली में एक संतुलित किराया कानून बने इस हेतु एक विशेष टास्क फ़ोर्स का गठन किया जाए जिसमें वरिष्ठ सरकारी अधिकारी और सम्बंधित वर्गों के प्रतिनिधि शामिल हों ! |