सत्य की असत्य पर जीत को देखने के लिए हर
व्यक्ति रामलीला मैदान में पहुंचना चाहता है और पहुंचता भी है। लेकिन ऐसे
में नैतिक जिम्मेदारी पुलिस के साथ-साथ उन लोगों की भी बनती है जो रावण दहन
देखने पहुंचते हैं। ऐसी भीड़ में संयम रखने की जरूरत है।
नोएडा
स्टेडियम में रामलीला का भव्य मंचन के बाद भ्रष्टïाचार, महंगाई और महिला
उत्पीडऩ का पुतला जलाया गया। आयोजकों की ओर से बेहतरीन इंतजाम होने के
बावजूद भी हजारों की संख्या में आए लोग जल्दबाजी में आकर व्यवस्था को
बिगाड़ बैठे। चारो ओर डंडे लेकर खड़ी पुलिस व्यवस्था को बनाने में जुटी थी
लेकिन बिना डंडा चलाए ही व्यवस्था को बनाए रखना चाह रही पुलिस केवल
मुखदर्शक बनकर ही रह गई। पुलिस के सामने लोग एक-दूसरे को धक्का देकर आगे
बढ़ते रहे। मगर, दशहरे वाले दिन पुलिस करती भी तो क्या करती। मनोरंजन करने
आए लोगों पर डंडा चलाना नैतिकता के खिलाफ जा रहा था। लेकिन इसके चलते यहां
पर भगदड़ मच गई। रामलीला में नजारा कुछ इस तरह था कि मुख्य अतिथि अशोक
प्रधान, आयोजन समिति के मुख्य संरक्षक एवं प्रिया गोल्ड के सीएमडी बीपी
अग्रवाल प्राधिकरण के एसीईओ पीके अग्रवाल ने जैसे ही यहां रावण दहन के लिए
चिंगारी लगाई तुरंत लोग वापस जाने लगे। जैसे-जैसे रावण की आग बढ़ती गई ठीक
वैसे ही भीड़ बेकाबू होती चली गई। सेक्टर-12 से 22 तक सड़क खचाखच भरी थी।
स्थिति इस तरह थी कि पैर रखने को भी जगह मिलनी मुश्किल थी। ऐसे में एक
दूसरे को धक्का देकर आगे बढ़ रहे लोगों के पैरों तले कुछ लोग कुचले भी गए
जो गंभीर रूप से घायल भी हो गए। आयोजकों की ओर से महज गलती यह थी कि
उन्होंने रावण दहन के दायरे को थोड़ा छोटा रखा था जो कि भगदड़ का एक और
बड़ा कारण था। मनोरंजन करने आए लोगों को आखिर ऐसी क्या जल्दी होती है जो
एक-दूसरे की जान की परवाह नहीं करते।
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