राष्ट्रीय (23/09/2014) 
पत्रकारिता एवं लेखन कार्यशाला – 2014 का सफलतापूर्वक समापन

गाँधी शांति प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित पंद्रह दिवसीय पत्रकारिता एवं लेखन कार्यशाला- 2014 का गत दिनों सफलतापूर्वक समापन हो गया.

कार्यशाला का शुभारंभ वरिष्ठ पत्रकार एवं पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) के पूर्व कुलपति अच्युतानंद मिश्र के व्याख्यान से हुआ था. बाद के दिनों में कार्यशाला के प्रतिभागियों को वक्ता या प्रशिक्षक के रूप में जिन वरिष्ठ पत्रकारों-लेखकों का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ उनमें पुण्यप्रसून वाजपेयी, अकु श्रीवास्तव, आनंद प्रधान, कमर वहीद नकवी, जवाहरलाल कौल, देवप्रिय अवस्थी, अनुपम मिश्र, वर्षा दास, प्रियदर्शन, मणिकांत ठाकुर (बीबीसी, पटना), रवीश कुमार, अरुण कुमार त्रिपाठी, संत समीर, रामबहादुर राय, अरविन्द मोहन, डॉ. वेद प्रताप वैदिक, एन के सिंह, अनिल चमड़िया, प्रसून लतांत एवं अमलेश राजू (क्राइम रिपोर्टर, जनसत्ता) के नाम शामिल हैं.

कार्यशाला के दौरान पत्रकारिता व लेखन संबंधी जिन महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई उनमें पत्रकारिता के सिद्धांत एवं व्यवहार, सामाजिक उपादेयता का संकट, उसमें प्रवेश की कसौटी, भाषा तथा वर्तनी का महत्व, पत्रकारिता के पारिवारिक दुश्मन, कला जगत की पत्रकारिता, जनांदोलनों एवं जनसंगठनों की पत्रकारिता, कूटनीतिक पत्रकारिता, प्रेस स्वतंत्रता, उस पर पड़ने वाले वाह्य एवं आंतरिक दबाव, लेखन की दृष्टि जैसे विषय महत्वपूर्ण हैं. इस दौरान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया संबंधी कुछ महत्वपूर्ण विषयों जैसे: उसकी रिपोर्टिंग, भाषा एवं स्क्रिप्ट लेखन आदि पर भी विस्तार से चर्चा हुई.

गाँधी शांति प्रतिष्ठान द्वारा चलाई जा रही इस कार्यशाला का मूल उद्देश्य है - पत्रकारिता के क्षेत्र में आने वाली नई पीढ़ी के दिल-दिमाग में पत्रकारिता व लेखन की सार्थक दृष्टि पैदा करना, मिशन भाव अथवा मूल्यों-आदर्शों का किसी न किसी रूप में बीजारोपण तथा जन सरोकारों के प्रति उसकी निष्ठा में वृद्धि करना; देश-समाज व राष्ट्रीयता के मूल्यों के प्रति उसके अंदर संवेदनशीलता को और बढ़ाना तथा मानवीय सरोकारों के प्रति और ज्यादा सजग व सतर्क करना. उद्देश्य यह भी है कि सत्य, शांति व अहिंसा के मूल्य उसकी प्राथमिकता में ऊपर आयें एवं वह मानवतापूर्ण देशभक्ति के संस्कार से ओत-प्रोत हो। साथ ही पत्रकारिता व लेखन की दुनिया में मूल्यों-आदर्शों व सरोकारों की भूमिका पर बहस को भी नई ऊर्जा प्रदान की जा सके। अर्थात नई पीढ़ी के पत्रकारों के अंदर किसी न किसी रूप में मूल्यात्मकता का उन्नयन हो.

युवाओं की उत्साहजनक भागीदारी

उपर्युक्त उद्देश्यों को ध्यान में रखकर गत वर्ष की भांति इस वर्ष भी इस अनोखी कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसमें उत्साहपूर्वक बड़ी संख्या में ऐसे युवाओं ने भागीदारी की जो पत्रकारिता को अपना कैरियर बनाना चाहते हैं अथवा भविष्य में अन्य किसी पेशे में रहते हुए भी किसी न किसी रूप में पत्रकारिता या लेखन से जुड़े रहना चाहते हैं। इसमें दिल्ली एवं दिल्ली से बाहर के विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों एवं संस्थानों के लगभग 80 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया. प्रतिभागियों की यह संख्या तब रही जब कार्यशाला में प्रवेश हेतु प्रत्येक प्रतिभागी को कम से कम तीन सौ शब्दों का एक हस्तलिखित नोट देना अनिवार्य किया गया था. व्याख्यान के अंत में प्रतिदिन प्रतिभागियों ने विशेषज्ञों से जमकर सवाल-जवाब किए. जरूरी विषयों से संबंधित पुस्तकें, पत्रिकाएं व लेख भी वितरित किए गए. प्रतिभागियों ने बड़ी संख्या में समाचार, रिपोर्ट, लेख व फीचर भी लिखा. प्रतिभागियों द्वारा तैयार की गई इस सामग्री से ही एक आठ पृष्ठीय अख़बार ‘युवा उद्घोष’ का प्रकाशन भी किया गया.

विषय की महत्ता व युवाओं की उत्साहजनक भागीदारी को देखते हुए गाँधी शांति प्रतिष्ठान पत्रकारिता एवं लेखन कार्यशाला को साल का एक नियमित कार्यक्रम बनाने पर विचार कर रहा है. सहयोग देने वाले विद्वतजनों के प्रति आभार प्रकट करते हुए कार्यशाला संयोजक अभय प्रताप का कहना है कि व्यावसायिक मीडिया समूहों एवं संस्थानों के आयोजनों से इतर यह एक मिशनरी आयोजन है. इसे कभी भी व्यावसायिक रूप नहीं दिया जा सकता. इसकी गरिमा व पवित्रता को बनाए रखना हमारा प्राथमिक लक्ष्य है. अतः मूल्यात्मक निष्ठा रखने वाले चंद लेखकों-पत्रकारों, देशभक्त नागरिकों, बुद्धिजीवियों एवं कार्यकर्ताओं के (विशेष रूप से हिंदी जगत के) सहयोग से ही यह कार्यक्रम आगे बढेगा.

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