लोग समझते हैं की मौत के बाद आमिर गरीब, अपना पराया के सभी भेद खत्म हो जाते है - - - -लेकिन ये महज भ्रम से ज्यादा कुछ नहीं राजधानी के निगम बोध घाट पर ....... मुर्दों पर भी भेद भाव की सियासत होती दिखी - - - शमशान घाट समिति द्वारा सात लावारिश शवों का अंतिम संस्कार इनकार करने के बाद श्मशान भूमि में पुलिस और समिति में टकराव पैदा हो गया - - - कश्मीरी गेट बस अड्डे के सामने बना ये है दिल्ली का सबसे बड़ा और सबसे पुराना शमशान घाट निगम बोध घाट .... जिसके संचालन का जिम्मा नगर निगम के पास है ....लेकिन आत्मा और परमात्मा के इस मिलन के द्वार पर भारी भेद भाव किया जाता है .... यहाँ मोल की जलती चिताओं के अलावा गरीब और लावारिस चिताओं की कोई अहमियत नहीं - - - - निगम की इस शमशान भूमि पर बड़ी गैर सरकारी संस्था पंचायत वैश्य बीसे अग्रवाल का कब्जा है - - - कहने को इस शमशान भूमि परिसर की देखभाल से लेकर यहाँ लकड़ियों तक की जिम्मेवारी यह संस्था संभालती है - - - -मगर यह संस्था भी रकम देने वालों की सेवा में तत्पर रहती है -- सरदार त्रिलोक सिंह ,संत कबीर सेवा संस्था के लिए बिना किसी लालच के लावारिस शवों को अपने वाहन से शमशान घाट तक पहुचाते है - - -यह दो शवो को अपने वाहन में लाये है - - - समिति ने इनके शवों का भी संस्कार करने से इनकार कर दिया - - - त्रिलोक सिंह ने इस घटना के बाद सीधा इंसानियत पर निशाना साधा है .. दिल्ली पुलिस लावारिस लाशों को अंतिम संस्कार के लिए दिल्ली नगर निगम के शव दह गृहों पर ले जाती है - - - मगर लापरवाही के चलते सराये काले खां और बेला रोड का CNG और इलेक्ट्रिक शव दह गृह ठप पडा है - - - - इसके बाद पुलिस के सामने निगमबोध घाट का सहारा बचता है - - - यहाँ भी इन शवों के संस्कार को लेकर विवाद पैदा हो गया - - - दिल्ली नगर निगम के इस शमशान घाट पर गैर सरकारी समिति की दादागिरी चलती है - - - - -हलाकि मीडिया की टीम के पहुँचने के बाद यह समिति ने अपनी साख बचाने की खातिर संस्कार करने के लिए और समिति के अध्यक्ष राजी हो गए ..फिलहाल इन सात शवो का संस्कार हो गया - - -मगर आज जिस तरह से लावारिस शवो की दुर्गति हुई उसको देखते दिल्ली नगर निगम को आत्म मंथन करने की जरूरत है - - - मणि आर्य , संवाददाता , दिल्ली |