रुद्रपुर। करीब साढ़े सात साल तक न्यायिक लड़ाई लड़ने के बाद आखिरकार तृतीय अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश नीना अग्रवाल ने मंगलवार को पांच कथित माओवादियों को बरी कर दिया है। उन पर राष्ट्रद्रोह की गतिविधियों में संलिप्त होने का आरोप था। 28 सितंबर 2005 को गदरपुर के तत्कालीन थानाध्यक्ष केपी सिंह ने मुखबिर की सूचना पर पुलिस पार्टी के साथ दिनेशपुर थानाक्षेत्र के ग्राम राधाकांतपुर की पुलिया के पास कथित माओवादी अनिल चैड़ाकोटी उर्फ हेमू पुत्र नारायण दत्त चैड़ाकोटी निवासी ग्राम आमखरक सूखीडांग पट्टी जिला चंपावत, शंकरराम उर्फ गोपाल भट्ट उर्फ विवेक पुत्र लक्ष्मी दत्त भट्ट निवासी दुम्का बंगर हल्दूचैड़ थाना लालकुंआं, जीवन चंद्र आर्या पुत्र दानवीर आर्या निवासी राजपुरा जिला अल्मोड़ा, नीलू बल्लभ पुत्र विभीषण बल्लभ निवासी ग्राम राजपुरा नंबर दो थाना गदरपुर और राजेंद्र फुलारा पुत्र धर्मानंद निवासी छत्तगुल्ला पट्टी थाना द्वाराहाट को पकड़कर उनके विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कराते हुए कहा था कि ये लोग राधाकांतपुर के कथित सूदखोर व्यापारी की हत्या करने जा रहे थे। इन सबके विरुद्ध तृतीय अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश नीना अग्रवाल की अदालत में मुकदमा चला। जनविरोधी सरकारें जनता के लिए संघर्षरत ताकतांे पर दमन चक्र चलाने के लिये राजद्रोह को हथकण्डे के रूप मे प्रयोग कर रही ः आरडीएफ हल्द्वानी। राजनैतिक बंदी रिहाई कमेटी (सी0आर0पी0पी0) व क्रांतिकारी जनवादी मोर्चा (आर0डी0एफ0) उत्तराखण्ड ने कहा कि सितम्बर 2005 में छात्र-किसान नेता व आर0डी0एफ0 के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष जीवन चन्द्र (जे0सी0), छात्र नेता अनिल चैड़ाकोटी, मजदूर नेता नीलू बल्लभ को उत्तराखण्ड की कथित मित्र पुलिस ने राजद्रोह के फर्जी मुकद्में में जेल भेज दिया था। छात्र नेता गोपाल भट्ट, और राजेन्द्र फुलारा को जिन्हें अन्य फर्जी मुकदमों में 2007 व 2008 में गिरफ्तार किया गया उन पर भी 2005 का दिनेशपुर थाने का उक्त मुकदमा लगा दिया। 25 सितम्बर 2005 को जीवन चन्द्र व नीलू बल्लभ को गदरपुर से तथा अनिल चैड़ाकोटी को खटिमा से पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर 3 दिन अवैध हिरासत में रखकर 28 सितम्बर 2005 को 121 ए, 124 बी, 153 बी व 7 क्रिमिनल एमिडमेंट एक्ट की धारायें लगाकर राजद्रोह का फर्जी मुकदमा दिने’ापुर थाने में दर्ज कर जेल भेज दिया गया। तीन-तीन, चार-चार साल जेल में बिताने के बाद ये लोग जमानत पर बाहर आये तो उत्तराखण्ड की पुलिस द्वारा तरह-तरह से उक्त नेताओं का उत्पीड़न व प्रताड़ना जारी रहा। 28 मई 2013 को उक्त मुकदमें का फैसला सुनाकर ए.डी.जे. न्यायालय रूद्रपुर ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया। उक्त मुकदमें की पैरवी वरिषठ अधिवक्ता ए0डी0 मैसी द्वारा एवं सहयोग एडवोकेट निर्मल मजमूदार द्वारा किया गया। न्यायालय के निर्णय से यह स्पषट हो जाता है कि उत्तराखण्ड की सरकारें व उत्तराखण्ड की कथित मित्र पुलिस द्वारा प्रदेश के नौजवानोंको राजद्रोह के फर्जी मुकदमें में फंसाकर इस व्यवस्था की नाकामी व सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ आम जनता का ध्यान भटकाना चाहती है। प्रदे’ा की सरकारें जनविरोधी नीतियों व प्राक‘तिक सम्पदा (जल, जंगल, जमीन व खनिज सम्पदा) की लूट के खिलाफ जनता के विरोध व असहमति के स्वर को बर्दाशत नहीं करना चाहती। यदि कोई व्यक्ति सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ व प्राक‘ति सम्पदा की लूट के खिलाफ विरोध-प्रतिरोध करता है तो वह सरकार की नजर में राजद्रोही हो जाता है। प्रदेश की प्राकशतिक सम्पदा की लूट को रोकने के लिए प्रदेश की संघर्षशील ताकतें, आंदोलनकारी ‘शक्तियां, लगातार प्रतिरोध कर रही है। उपरोक्त मुकदमें के सभी आरोपी इस संघर्ष का हिस्सा रहे हैं। पिछले डेढ़-दो दशक से उक्त लोग जल-जंगल-जमीन पर जनता का अधिकार कायम करने व एक “शोषण मुक्त समतामूलक समाज व्यवस्थ के निर्माण के संघर्षरत रहे हैं। यही बात उत्तराखण्ड की सरकारों व पुलिसिया तंत्रों को पसंद नहीं हैं। जिसके कारण उक्त लोगों पर फर्जी मुकदमा लगाया गया। माक्र्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद एक वैज्ञानिक दर्शन है, एक वैज्ञानिक विचारधारा है जो वर्तमान शोषण व दमन पर टिकी व्यवस्था के बजाय जनवादी व समानता पर आधारित वैज्ञानिक समाजवाद की बात करता है तथा वर्तमान ‘ाो”ाणकारी व्यवस्था से मुक्ति का रास्ता दिखाता है। चूंकि उक्त छात्र व किसान नेता इस विचारधारा को मानते हैं इसलिए उनको राजद्रोह के मुकदमों में जेल में रखा गया। क्योंकि हमारी सरकारें व पुलिसिया ंतत्र नही ंचाहता की जनता को सही नजरियें से आंदोलन के लिए प्रेरित किया जाय। पूरे उत्तराखण्ड में बड़े बांधों का विरोध, जल-जंगल-जमीन पर हक-हकूक की लडाई सहित तमाम आंदोलनों में नेतृत्वकारी, आंदोलनकारियों पर उत्तारखण्ड की कथित मित्र पुलिस द्वारा सन् 2004 से दर्जनांे आंदोलनकारियों पर राजद्रोह के फर्जी मुकद्में लगाये गये हैं। किंतु लगातार न्यायालय के निर्णयों द्वारा यह स्प”ट होता जा रहा है कि उत्तराखण्ड की पुलिस द्वारा आंदोलनकारियों पर फर्जी मुकदमें लगाये गये थे। सन् 2004 में भी हसपूरखत्ता (ऊधमसिंह नगर) के मुकदमें में 10 लोगों पर राजद्रोह के फर्जी मुकदमें लगाये गये थे। 14 जून 2012 को ए0डी0जे0 रुद्रपुर न्यायालय ने उक्त लोगों को बरी कर दिया गया था। उत्तराखण्ड में जनविरोधी सरकारें चाहे वह काग्रेस की हो या भाजपा की सरकार तथा पुलिसिया तंत्र द्वारा जन विरोधी नीतियों व वर्तमान शोषणकारी व्यवस्था के खिलाफ उठ रहे विरोध व प्रतिरोध का दबाने के लिये ही संघर्षरत ताकतो पर दमन चक्र चलाने के लिये राजद्रोह को हथकण्डे के रूप मे प्रयोग कर रही है। प्रेस वार्ता को आर0डी0एफ0 के प्रदेश अध्यक्ष जीवन चन्द्र (जे0सी0), सी0आर0पी0पी0 के संयोजक पान सिंह बोरा, टी0आर0 पाण्डे, सेवानिव‘त्त प्रोफेसर प्रभात उप्रेती, छात्र नेता गोपाल भट्ट आदि ने सम्बोधित किया। चन्द्रकला तिवारी, पूजा भट्ट, दीप पाठक, डा0 उमेश चंदोला इश्वर फुलारा सहित अनेक लोग थे।
- अयोध्या प्रसाद ‘भारती’, |