सोने की कीमतें जितनी तेजी से ऊपर चढ़ी थीं, उसी तेजी से गिर भी रही हैं। शनिवार को 1250 रुपये तो सोमवार को यह 1300 रुपये फिसलकर अब 27 हजार से नीचे है। क्या सोने में निवेश का यह सही वक्त है या फिर दाम और गिरेंगे? पढ़ें 'द इकनॉमिक टाइम्स' के सलाहकार संपादक स्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर का यह लेख... बीते दशक में सोने की भारतीय कीमत छह-गुना बढ़ गई। इसका परिणाम सट्टेबाजी के मिजाज में किए गए रिकॉर्ड स्वर्ण आयात के रूप में देखने को मिला। 2012-13 के पहले दस महीनों में यह आयात 42 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जिसके चलते चालू-खाता घाटा खतरे के निशान को पार करने लगा। वित्तमंत्री हताशा में हाथ मल रहे हैं, जबकि गृहणियां कह रही हैं कि सोना खरीदने से ज्यादा अक्लमंदी का काम तो उन्होंने कभी किया ही नहीं। सॉरी, लेकिन यह पार्टी अब खत्म हो चुकी है। यह धारणा पूरी तरह निराधार है कि सोना सबसे अच्छा निवेश है और इसकी कीमत हमेशा ऊपर ही जाती है। इतिहास बताता है कि सोने की कीमतों में पागलपन भरे उतार-चढ़ाव आते हैं और थोड़े समय के लिए भले ही शानदार निवेश लगे, लेकिन फिर यह बर्बादी का ही सबब बनता है। सुरक्षित निवेश जैसा तो कोई मामला ही इसके साथ नहीं है। धारणा और यथार्थ इन दो दशकों में सोने में निवेश करने वालों की शर्ट तो क्या चड्ढी भी उतर गई। लेकिन 2003 के बाद इसकी कीमतें चढ़ने लगीं और 2011 के अंत में इसने 1,890 डॉलर प्रति औंस की नई ऊंचाई छुई। लेकिन उसके बाद से यह काफी गिरा है और अभी 1,560 डॉलर पर है। गिरावट की वजहें इसकी एक वजह यह है कि यूरोजोन के बिखर जाने का डर 2011 में सोने को शिखर पर ले गया था। लेकिन अभी यह डर तकरीबन खत्म होने को है, लिहाजा सुरक्षित ठिकाने के रूप में सोने की भूमिका गौण हो गई है। दूसरे, अमेरिका पांच साल बाद अपने यहां मुद्रा आपूर्ति नियंत्रित करने की तरफ बढ़ रहा है। इसके चलते सट्टेबाजों के लिए खेल करने की गुंजाइश कम हो गई है। तीसरे, बेलआउट पैकेज की एक शर्त के रूप में साइप्रस को को अपने स्वर्ण भंडार बेचकर 40 करोड़ यूरो जुटाने की जरूरत पड़ सकती है। इससे न सिर्फ बाजार में सोने की भरमार हो जाएगी, बल्कि दुनिया में यह दहशत भी फैलेगी कि कहीं यूरोजोन के और भी संकटग्रस्त देशों को सोने बेचने के लिए मजबूर न कर दिया जाए। मसलन, संकटग्रस्त इटली के पास 2,452 टन, यानी 95 अरब डॉलर का संसार का संसार का चौथा सबसे बड़ा स्वर्ण भंडार है। सटोरियों ने 2010 और 2011 में 26 अरब डॉलर गोल्ड-लिंक्ड सिक्युरिटीज (ईटीएफ वगैरह) में लगाए थे। लेकिन 2012 का मध्य आते-आते जब यूरोजोन के अस्तित्व से जुड़ी आशंकाएं खत्म हो गईं तो उन्होंने मान लिया कि सोने में उछाल का दौर खत्म हो गया है, और अपनी-अपनी सिक्युरिटीज बेचकर बाजार से चलते बने। सोने से जुड़े सबसे बड़े ईटीएफ एसपीडीआर गोल्ड शेयर्स में 2013 के बीते तीन महीनों में 7.7 अरब डॉलर की बिकवाली देखी गई है। भारतीय सट्टेबाज और गृहणियां कृपया इस हकीकत पर गौर करें। पिछले दशक में जो खास वजहें सोने के उछाल के पीछे काम कर रही थीं वे अब खत्म हो चुकी हैं। यह समय सोना बेचने का है, खरीदने का नहीं। सोने के आयात को हतोत्साहित करने के लिए वित्त मंत्रालय ने इसपर आयात शुल्क बढ़ा दिया है। दुर्भाग्यवश, इसका परिणाम उलटा हुआ। इससे सोने की घरेलू कीमतें बढ़ गईं और सटोरियों को सजा मिलने के बजाय उनके मजे हो गए। सोने की तस्करी को भी इस कदम से बढ़ावा मिला है। कुछ जरूरी कदम |