राष्ट्रीय (30/03/2013) 
डीईआरसी की कार्य कुशलता पर विजय गोयल के गंभीर सवाल

 डीईआरसी (दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग) का जोरदार घेराव करने के बाद डीईआरसी के चेयरमैन पी.डी.सुधाकर और अन्य सदस्य ‘याम वढेरा, जे.पी. सिंह, जयश्री रघुरामन, अंजलि चन्द्रा के साथ दो घंटे चली बैठक के बाद भारतीय जनता पार्टी के दिल्ली प्रदेश  अध्यक्ष विजय गोयल व ‘चेतना’ के अनिल सूद व राजीव काकरिया एवं आर.डब्ल्यू. ए. प्रतिनिधि  सौरभा गांधी ने कहा कि ये साबित हो गया है कि डीईआरसी बिजली कम्पनियों के साथ दिल्ली सरकार के इशारे पर मिली हुई हैं।

 गोयल ने कहा कि इन बिजली कम्पनियों का लाइसंस की शर्तों का उल्लंघन करने पर करार रद्द हो सकता है पर एक बार भी डीईआरसी ने इनको नोटिस नहीं दिया।

डीईआरसी ने यह माना कि बिजली कम्पनियों से समझौते के अनुसार तीनों कम्पनियों को पूरी दिल्ली में बिजली वितरण करने का हक था, ताकि इनमें कम्पीटिशन होकर मोबाइल कम्पनियों की तरह सस्ती दरों पर बिजली मिलती। पर कमिशन का यह जवाब था कि क्योंकि ये एक ही स्त्रोत से एक ही दाम पर बिजली खरीद रहे हैं, और एक ही दाम पर बेच सकते हैं, इसलिए इसकी जरूरत नहीं है। डीईआरसी का यह कथन कि सेंट्रल इलैक्ट्रिसिटी एक्ट 2003, नेशनल टैरिफ पोलिसी 2005 व नेशनल इलैक्सिटी पालिसी 2005 के विपरीत है। जिसमें इन कम्पनियो  में प्रतिस्पर्धा की बात की गई है।

विजय गोयल ने पूछा कि जब बिजली कम्पनियां अपनी बैलेंस शीट जो कि पावर फाइनेंस कार्पोरेशन में जमा करवाती है, उसमें मुनाफा दिखाती है और जो बैलेंस शीट आयोग के पास आती हैं, उसमें घाटा दिखाया जाता है। आयोग इस तरह बैलेंस शीट कैसे स्वीकार करता है ? इस पर आयोग ने जवाब दिया कि ये उनकी जानकारी में नहीं है। वे इसकी जांच करके हमें बताएंगे। गोयल ने यह कहा कि जब आपके पास आडिटिड एकाउंट्स आते हैं तो आपका जवाब उचित नहीं हैं। तब भी आयोग ने कहा कि हम इसकी जांच करेंगे। अनिल सूद, राजीव काकरिया एवं सौरभ गांधी ने बताया कि ये सारा डाटा डीईआरसी द्वारा की गई जनसुनवाई के दौरान आयोग के सामने अपने विरोध के साथ आयोग में दाखिल करवाया है, जिसका कि आयोग के किसी भी आदेश में उल्लेख नहीं है। इससे यह साफ जाहिर होता है कि आयोग और बिजली कम्पनियों के बीच में सांठ-गांठ है।

डीईआरसी चैयरमेन ने कहा कि मुम्बई में यह प्रयोग असफल रहा है, जबकि हकीकत यह है कि वहां बहुत सारे उपभोक्ता एक बिजली कम्पनी से दूसरी बिजली कम्पनी में शिफ्ट हो गए क्योकि  वहां बेहतर सेवा व गुणवत्ता की बिजली मिल रही थी। भाजपा प्रतिनिधिमंडल के कहने के बाद कमीशन ने माना कि वे मुम्बई का अध्ययन करवाएंगे और फिर भी दिल्ली में भी लागू करने पर विचार करेंगे।

कमीशन ने अपनी गलती स्वीकार की कि उन्होंने बिजली कम्पनियों के statutory auditor - प्राइज वाटर हाउस कूपर को ही अपना परामर्शदाता नियुक्त कर लिया जबकि यही परामर्शदाता रिलायंस ईन्फ्रा का भी परामर्शदाता है। ये पूछने पर कि ये क्यों हुआ और उस पर आपने क्या कार्रवाई की ? कमीशन ने कहा कि वे जांच कर रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि अभी तक वो नियुक्त हैं। उन्हें कितना पैसा अब तक दिया गया है, वह कमीशन बताए और उन्हें कब हटाया जाएगा ?

कमीशन ने यह माना कि बिजली कम्पनियों का हिसाब-किताब इतना लम्बा चैड़ा है कि उन्होंने इंस्टीट्यूट आफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से मदद मांगी पर उन्होंने मना कर दिया।


गोयल के यह पूछने पर कि ये लम्बे-चैड़े खाते कौन देख रहा है, तो उन्होंने कहा कि फोरम आफ रेग्यूलेटर ने एक हिसाब-किताब का फार्मूला बनाया है, जिसका ये पालन कर रहे हैं। जबकि फोरम आफ रेग्यूलेटर की वेबसाइट पर ऐसा कोई सिस्टम नहीं है।

चैयरमेन ने कहा कि हमने बिजली कम्पनियों ने जितना नुकसान दिखाया और उसके हिसाब से जितने पैसे मांगे उसमें हमने लगभग 100 करोड़ कम कर दिए।  गोयल ने पूछा कि इन कम्पनियों को आपने क्या दंड दिया कि इन्होंने आपको फर्जी आंकड़े दिए जिसके कारण आपको 100 करोड़ कम करने पड़े और यह एक बार नहीं हुआ, हर साल कम्पनियां बढ़ाकर अपने खर्चे बताती है और कमीशन उन्हें कम करता है और फिर ये बिजली कम्पनियां अपील में ।च्ज्म्स् में जाती है और हमारे आदेश को रद्द करवाकर अपने हक में फैसला ले आती हैं। फिर क्यों डीईआरसी इसको प्रभावी ढंग से चैलेंज नहीं करती ?

 गोयल के पूछने पर कि दो बिजली कम्पनियों बीवाईपीएल और बीआरपीएल के पास अपनी चल-अचल सम्पत्ति का विवरण नहीं है, जिसका अध्ययन डीईआरसी द्वारा नियुक्त कमेटी द्वारा किया जा चुका है। इस वजह से डीईआरसी ने दोनों बिजली कम्पनियों के ऊपर क्या एक्शन  लिया, इस पर चैयरमेन  पी.डी. सुधाकर ने बताया कि इस वजह से बिजली कम्पनियों पर इनकी ट्रयूअप एक्सरसाइज के दौरान एक्शन  लिया जाएगा (ट्रयूअप ः पांच साल पूर्व बिजली कम्पनियां अनुमानित खर्चे देती है जिसका पांच साल बाद असली खर्चे के साथ मिलान किया जाता है।) मजे की बात यह है कि आज तक ट्रयूअप नहीं हुआ।

 गोयल ने पूछा कि पिछले दो वर्ष में दिल्ली में टैरिफ लगभग 59 प्रतिशत बढ़ा, जबकि गुजरात में सिर्फ 6 प्रतिशत। इसकी क्या वजह है, क्योंकि सब बिजली कम्पनियां एक ही स्त्रोत से बिजली खरीदती हैं और सवदह ज्मतउ च्च्। करने पर बिजली कम्पनियों को सस्ती दरों पर बिजली मिलती है। इस पर चैयरमेन ने जवाब दिया कि कोयले की कीमत बढ़ने से दिल्ली में बिजली सप्लाई करने वाले प्रोजेक्ट्स की कीमत बढ़ गई है। इस पर गोयल ने कहा कि क्या आयोग हमें  बिजली कम्पनियों द्वारा साइन किया गया  PPA  की प्रतिलिपि देगा ताकि हम इस कथन का सत्यापन कर सकें। इस पर चैयरमेन ने कहा कि वह हमें इसकी प्रतिलिपि देंगे जो आज तक नहीं मिली।

बिजली कम्पनियों द्वारा फ्लैट्स में रहने वाले उपभोक्ताओं के बिजली मीटरों में कामन न्यूट्रल लगा दिया है, जो कि कानूनन गलत है। श्री गोयल ने जब पूछा कि आपने इसके ऊपर बिजली कम्पनियों पर क्या एक्शन  लिया, तो आयोग ने जवाब दिया कि हमने बिजली कम्पनियों को निर्देश  दे दिए हैं।  गोयल ने पूछा कि क्या बिजली कम्पनियों को दिए गए निर्देशो  का उन्होंने पालन किया या नहीं ? क्या आयोग हमें यह बताएगा। इस पर आयोग ने बताया कि वे हमें सूचित करेंगे।

 गोयल ने ये पूछा कि बिजली कम्पनियों ने जो आपको ट्रांसफार्मर वाइज बिजली चोरी का डाटा दिया है, उस पर आयोग ने क्या एक्शन  लिया ? इस पर आयोग ने बताया कि उन्हें अभी इसका ज्ञान नहीं है। इस पर अनिल सूद ने आरटीआई का जवाब कमिशन के सामने रखा और पूछा कि जब चोरी 65 से 99 प्रतिशत है तो बिजली कम्पनियां बिजली क्यों सप्लाई करती हैं ? इस पर आयोग ने बताया कि हम बिजली चोरी कम करने का एक टारगेट देते हैं और अगर वह टारगेट पूरा नहीं होता तो हम बिजली कम्पनियों पर एक्शन  लेते हैं। बहुत-से ट्रांसफार्मर ऐसे भी हैं, जिन पर नेगेटिव लास दर्शाया  गया है और आयोग से यह सवाल किया गया कि ये नेगेटिव लाॅस कैसे आया और आयोग ने इस पर क्या एक्शन  लिया ? इस पर आयोग ने जवाब दिया कि ये उनके संज्ञान में नहीं है, जो कि सरासर झूठ है, क्योंकि ये डाटा आयोग ने ही  अनिल सूद को दिया।

 गोयल ने पूछा कि आज तक आपने बिजली कम्पनियों के ऊपर क्या एक्शन लिया तो आयोग ने कहा कि हम आपको सूचित करेंगे।

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