राष्ट्रीय (15/03/2013)
स्वाईन फ्लू के रोगियों के उपचार के लिए उचित प्रबंध
स्वास्थ्य विभाग के प्रवक्ता ने जानकारी देते हुए कहा कि राज्य के सभी अस्पतालों को स्वास्थ्य निदेशालय द्वारा निर्देश दिए गए हैं कि प्रदेश के सभी अस्पतालों में स्वाईन फ्लू के मरीजों का उपचार प्राथमिकता के आधार पर किया जाए। पी.सी.आर. टेस्ट द्वारा इसकी पुष्टि की सुविधा इन्दिरा गाॅंधी आयुर्विज्ञान संस्थान, शिमला में उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि स्वाईन फ्लू एक विशेष प्रकार के वायरस इन्फ्रलुएंजा-ए (एच 1 एन 1) से ग्रसित व्यक्ति के सम्पर्क में आने से हो सकता है। बुखार, खांसी, गला दुखना, नाक बहना, सिरदर्द, बदन दर्द, थकान, सांस लेने में कठिनाई, दस्त तथा उल्टियां इसके सामान्य लक्षण हैं। स्वाईन फ्लू के लक्षण जैसेः खांसी, बहती नाक, छींक एवं बुखार से प्रभावित व्यक्तिों से कम से कम तीन फुट की दूरी बनाए रखनी चाहिए तथा इस तरह के लक्षण होने पर खांसते अथवा छींकते समय अपने मुंह एवं नाक को रुमाल से ढकना चाहिए। अपनी नाक, आंखों अथवा मुंह को छूने से पहले अथवा पश्चात् अपने हाथ को साबुन से धोएं, अच्छी नींद लें, शारीरिक रूप से सक्रिय रहंे तथा तनाव से बचें। इसके अलावा स्वच्छ तथा अधिक मात्रा में पानी तथा पोषणयुक्त भोजन का सेवन करना चाहिए। विशेष तौर पर बच्चों, गर्भवती महिलाओं, बुजुर्गों, शुगर (मधुमेह), हृदय, किडनी तथा दमे के मरीजों में स्वाईन फ्लू के होने का ज्यादा खतरा रहता है। उन्होंने आगे बताया कि संक्रमित व्यक्तियांे से हाथ न मिलाएं, गले न लगें अथवा अन्य सम्पर्क बढ़ाने वाले कार्य न करें। स्वाईन फ्लू के लिए अत्यधिक भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर नहीं जाना चाहिए, खुले में नहीं थूकना चाहिए तथा डाॅक्टर की सलाह के बिना कोई दवा नहीं लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि स्वाईन फ्लू से बचाव व इसका उपचार दोनों सम्भव है। इसके साथ ही उन्होंने लोगों से अपील भी की कि बताए गए लक्षण दिखायी देने पर नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में जाकर तुरन्त चिकित्सक को दिखाएं क्योंकि उचित सावधानिओं व दवाओं से स्वाईन फ्लू का इलाज किया जा सकता है। |
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