केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों की रोकथाम संबंधी आपराधिक कानून संशोधन विधेयक को महज 12 मिनट में अपनी मंजूरी दे दी। इसमें सहमति से यौन संबंध बनाने की आयु सीमा 18 से घटाकर 16 वर्ष की गई है। अब प्रश्न है कि क्या नौवीं, दसवीं या ग्यारहवीं कक्षा में पढने वाली सोलह साल की एक लड़की इतनी परिपक्व होती है कि कानून उसे यौन संबंध बनाने की अनुमति दे। अभी ज्यादा दिन नहीं गुजरे होंगे जब शारदा एक्ट बना था और लड़कियों के लिए विवाह की उम्र 19 साल तय की गई थी। अब अचानक खुद सरकार बच्चियों को यौन संबंध, बलात्कारियों को बचाने और अधिकाधिक बालिकाओं को देह के धंधे में उतारने वालों की मदद करने का कानून बनाने में जुटी है। यह अच्छी बात है कि महिला एवं बाल विकास मंत्री कृष्णा तीर्थ ने थोड़ा सा विरोध किया। लेकिन उनका विरोध कोई मायने नहीं रखता। क्योंकि सरकार जो तय कर चुकी वह करके ही रहेगी यदि व्यापक जन समुदाय इसका विरोध नहीं करता तो। दिल्ली गैंगरेप के बाद दिल्ली में जबरदस्त आंदोलन करने वाले अब क्या कहना चाहेंगे ? इससे निश्चय ही बलात्कारियों, कच्ची उम्र की लड़कियों को बहला-फुसलाकर यौन संबंध बनाने वालों और देह व्यापारियों के वारे न्यारे हो जाएंगे। यह सेक्स लोलुप पुरुषों के लिए बनाया जाने वाला वैध रास्ता साबित होगा। इस प्रावधान का पुरजोर विरोध समाज की ओर से होना चाहिए। यह अकारण नहीं था कि गुजरे जमाने में कम उम्र में लड़कियों की शादी कम उम्र में करने को गलत ठहराते हुए कानून के मार्फत आयु सीमा तय कर दी गई थी। सैक्स की मानसिकता में बीते कुछ वर्षों में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है और कुछ सांसद तथा तथाकथित बुद्धिजीवी यौन संबंधों की आयु सीमा 14 वर्ष तक करने की मांग कर चुके हैं। 16 दिसंबर 2012 के दिल्ली गैंगरेप के बाद लड़कियों की कम उम्र में शादी करने और किशोर अपराध की आयु सीमा घटाने की मांग खूब उठाई गई। इसके पीछे मानसिकता यह है कि कम उम्र में होने वाले यौन अपराधों से अधिकाधिक कानूनी बचाव हो सके। इसका सर्वाधिक फायदा वह लोग उठाएंगे जिनकी सैक्स के लिए कम उम्र की लड़कियों की मांग रहती है। यह वैज्ञानिक सत्य है कि कम उम्र में लड़की शारीरिक और मानसिक रूप से शारीरिक संबंध बनाने और अपना अच्छा बुरा सोचने के मामले में परिपक्व नहीं होती। ऐसे में उसके साथ यौन संबंध बनाना उसके साथ ज्यादती है। यहां सहमति का कोई अर्थ नहीं है। एक तो लड़की की चेतना ही उन्नत नहीं और दूसरे उसको बरगलाना या सहमति का बयान दिलवा देना समर्थ के लिए मुश्किल नहीं है। यदि यौन संबंध बनाने की उम्र घटेगी तो बाल श्रम की आयु सीमा भी घटाने की मांग उठेगी, किशोर अपराधों के मामले में भी आयु सीमा में छूट दी जाएगी और वेश्यावृद्धि को भी देर-सवेर कानूनी जामा पहनाया जाएगा। और इस तरह समाज एक तरह से फिर पुराने बर्बर युग की तरफ मुड़ने लगेगा। अपराधों को कानून के जरिये रोका भी नहीं जा सकता, यह याद रखा जाना चाहिए। दिल्ली गैंगरेप के बाद तमाम हो-हल्ला हुआ। कड़े कानून की व्यापक मांग, पुलिस की तमाम सक्रियता, कानून के निर्माण के इस छोटे दौर में ही दर्जनों अत्यंत क्रूरतम बलात्कारों की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। छेड़छाड़ और सामान्य बलात्कार की घटनाएं तो अनगिनत हो चुकी हैं। अपराध हमारे समाज और व्यवस्था की देन हैं और यहीं से इनके उन्मूलन का सही रास्ता निकलेगा। बीस साल की उम्र बच्चों की परवरिश, शिक्षा और रोजगार की व्यवस्था सरकार और समाज करे तो अपराध न्यून हो जाएंगे। जन्म से बीस साल की उम्र तक भोजन, शिक्षा, मकान, चिकित्सा का भार सरकार उठाए। 15 साल की उम्र से बच्चे को उसकी रुचि के हल्के काम में लगाया जा सकता है और बीस साल की उम्र में उसे कोई न कोई स्थायी रोजगार प्रदान कर दिया जाना चाहिए। ऐसा हो जाए तो किसी के पास अपराध करने की सोचने और करने का समय ही नहीं होगा। इसके लिए वर्तमान व्यवस्थाओं में मामूली परिवर्तन करना होगा। रिटायरमेंट की उम्र घटाने, अत्यधिक बढ़े वेतनों को कम करने, संपत्ति अर्जित करने की सीमा, काम के घंटों में कमी करनी होगी। यह थोड़ा मुश्किल होगा लेकिन सरकार चाहे तो कर सकती है। इससे व्यापक समाज और देश का भला होगा। अधिकाधिक लोग देश के विकास के काम करेंगे, अपराधों की संख्या न्यूनतम हो जाने से अपराध उन्मूलन, कानून और व्यवस्था में व्यय होने वाला समय, श्रम, संसाधन और धन की व्यापक बचत होगी। समाज को इस बारे में गंभीरता से सोचना होगा। अन्यथा आने वाले दौर में जीवन बहुत मुश्किल होगा।
-अयोध्या प्रसाद ‘भारती’ (लेखक-पत्रकार) |