राष्ट्रीय (20/02/2013) 
प्रदेश में त्रि-स्तरीय पौधरोपण पद्धति अपनाने की आवश्यकताः वन मंत्री
वन मंत्री  ठाकुर सिंह भरमौरी ने कहा कि प्रदेश में वनों में घास, झाड़ी व वृक्ष प्रजातियों की त्रि-स्तरीय पौधरोपण पद्धति अपनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश के कई हिस्से लैंटाना (फुलणू) की समस्या से ग्रसित हैं और गरना, कैमल, मैंदडू, ककोहा तथा बसूटी जैसी स्थानीय प्रजातियां समाप्त हो रही हैं। इसके कारण चरागाहों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है और भू-उपयोग में बदलाव आया है।
श्री भरमौरी आज यहां हिमाचल प्रदेश वन विभाग द्वारा ‘हिमाचल प्रदेश फारेस्ट सैक्टर क्लाईमेट चेंज+ अडैप्टेशन प्रोजेक्ट’ पर जर्मनी सरकार को भेजे प्रस्ताव के अध्ययन के लिए जर्मनी से हिमाचल दौर पर आए फैक्ट फाईडिंग मियान दल को संबोधित कर रहे थे।
वन मंत्री ने कहा कि प्रदेश में हरे वृक्षों के व्यापारिक दोहन पर प्रतिबंघ जारी है लेकिन जलवायु समस्या से प्रभावी रूप से निपटने के लिए लिए कदम उठाने होंगे ताकि वन और पर्यावरण बचे रहें। इसके लिए वनों में फल, चारा तथा बालन प्रजातियों के पौधों के रोपण पर ध्यान देने की आवश्कता है। पौधों की प्रजातियों में विविधता से वनों में आग की घटनाओं को भी कम किया जा सकता है। उन्होंने बन्दरों की समस्या से निपटने के लिए नसबंदी कार्यक्रम के अतिरिक्त अन्य विकल्प अपनाने पर भी बल दिया।
श्री भरमौरी ने जर्मनी से आए मिशन सदस्यों का हिमाचल प्रदेश आने पर स्वागत किया। प्रदेश सरकार के प्रस्ताव पर अध्ययन के लिए यह दल जर्मनी के जी.आई.जैड व के.एफ.डब्ल्यू की ओर से  विन्फ्रैड सइस की अध्यक्षता में 12 फरवरी से हिमाचल दौर पर है। इस दल ने शिमला, सुन्दरनगर व पालमपुर में पारिस्थितिकी का जायजा लेने के उपरांत आज वन मंत्री से बैठक की।
मुख्य संसदीय सचिव (वन)  राजेश धरमाणी, ने कहा कि वनों पर चारों ओर से पड़ने वाले दबावों के कारण आज हमें मानव-वन्यजीव विवाद जैसी समस्याओं से निपटना पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन विश्वव्यापी समस्या है जिससे निपटने के लिए तीव्र विकसित होने वाली वनस्पति प्रजातियों की प्रणाली, गैर-परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों की उपलब्धता तथा अनुसंधान एवं अनुश्रवण की दिशा में अन्तर्राष्ट्रीय अनुभवों का लाभ उठाने के लिए द्विपक्षीय सहयोग की काफी सम्भावनाएं हैं।  
विन्फ्रैड सइस ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से हिमाचल प्रदेश संवेदनशील है। मिशन टीम ने प्रदेश में जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न
समस्याएं चिन्हित की हैं जिनमें लैंटाना व अन्य खरपतवार में वृद्धि, वनों में आग की बढ़ती घटनाएं, चारा व चरागाह क्षेत्र में कमी, वन औषधीय पौधों व गौण वनोपजों के उत्पादन में कमी, भू-क्षरण तथा जल स्त्रोतों का सूखना प्रमुख हैं।
उन्होंने कहा कि इस परियोजना में चीड़ के वनों में चैड़ी पत्ती के पौधरोपण द्वारा सुधार व चीड़ की पुरानी पौध का आधुनिक तकनीक से रखरखाव, बांस के जंगल को बढ़ावा, लैंटाना उन्मूलन, नर्सरियों का आधुनिकीकरण तथा वनों में जल स्त्रोतों का सुधार किया जाना प्रस्तावित है। परियोजना के कार्यान्वयन के लिए तकनीकी व वित्तिय कम्पोनेंट प्रस्तावित हैं जिन पर आगामी छः से आठ माह में विभिन्न स्तरों पर विचार-विमर्श किया जाएगा जिसके बाद जर्मनी सरकार से वित्तिय सहयोग प्राप्त किया जा सकेगा।
प्रधान सचिव (वन) सुश्री भारती एस सिहाग ने कहा कि वन अधिकारियों व कर्मचारियों में क्षमता विकास किया जाना चाहिए ताकि उन्हें जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न नई परिस्थितियों से निपटने के लिए व्यवसायिक रूप में तैयार किया जा सके।
प्रधान मुख्य अरण्यपाल श्री आर.के.गुप्ता सहित विभाग के उच्च अधिकारी बैठक में उपस्थित थे।
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