भारत के संसद पर हमला करने की साजिश रचने वाले अफजल गुरु को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गयी। अफजल की फांसी के बाद देश की राजनीति में जिस तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद थी, वह उम्मीदों से हटकर नहीं थी। सरकार की तरफ से सधी हुई प्रतिक्रिया दी गई तो विपक्ष ने सरकार के कदम को स्वागतयोग्य बताया, इस आरोप के साथ कि फांसी देने में देर हुई। इन सबके बीच कश्मीर अशांत है। पीओके में तो मातम पसरा है और अफजल की फांसी के बाद वहां पाकिस्तान समर्थित कठपुतली सरकार द्वारा तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा की गई। लेकिन इन सबके बीच पाकिस्तान में सियासत लगातार गरमा रही है। पाकिस्तान सरकार से इतर पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के सदस्य और सिनेट कमिटि ऑन डिफेंस के अध्यक्ष मुशाहिद हुसैन सैयद ने अफजल गुरु को न केवल बेकसूर करार दिया बल्कि भारत सरकार द्वारा दी गई न्यायिक मौत तक कह डाला। मुशाहिद हुसैन ने 5 अगस्त, 2005 के सुप्रीमकोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अदालत अफजल को फांसी की सजा इसलिए सुना रही है क्योंकि देश का मानस तभी संतुष्ट होगा जब दोषी को सजा-ए-मौत मिले। ऊधर, पाकिस्तानी मीडिया ने तो एक तरह से भारत के खिलाफ जंग छेड़ दिया है। जियो न्यूज के पत्रकार हामिद मीर ने अफजल गुरु को निर्दोष बताकर उसकी फांसी को गलत बताया है। हामिद मीर ने ट्वीट किया, 'मुझे लगता है कि अफजल गुरु निर्दोष था, लेकिन भारत में फांसी दे दी गई।' मीर ने अपने ट्वीट में आगे लिखा, 'भारत में मेरे कुछ मित्रों ने बताया कि कांग्रेस सरकार आगामी चुनावों में फायदा उठाने के लिए पाकिस्तान के साथ रिश्तों में तनाव लाना चाहती है।’ कई दक्षिणपंथी अखबारों ने अफजल गुरु की फांसी के बारे में लिखा है कि भारत सरकार का यह कृत्य कश्मीरी लोगों पर अत्याचार का उदाहरण है। पाकिस्तानी मीडिया ने बदले की भी बात की। नवा-ए-वक्त और द नेशन जैसे राष्ट्रवादी अखबारों ने तो यहां तक लिखा कि पाकिस्तान सरकार को अफजल की फांसी का जवाब पाकिस्तान की जेल में बंद सरबजीत सिंह को फांसी देकर देना चाहिए। लेकिन, पाकिस्तान में सबसे ज्यादा बिकनेवाले उर्दू अखबार ‘जंग’ ने लिखा कि लोग किसी भी तरह की भावनात्मक प्रतिक्रिया से बचें। जंग ने लिखा, ‘भावनात्मक प्रतिक्रिया देने की जगह हमें सब्र का परिचय देना चाहिए। हमें कश्मीरियों को नैतिक समर्थन देना जारी रखना चाहिए। राजनीतिक और कूटनीतिक मोर्चे पर भी हमें कश्मीर विवाद का हल संयुक्त राष्ट्र मसौदों के अनुरूप ढूंढने के लिए प्रयास करते रहना चाहिए।‘ कराची से छपनेवाले उदारवादी अंग्रेजी अखबार ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ ने लिखा, ‘इस घटना से कश्मीरियों में अलगाव की भावना बढ़ेगी क्योंकि अफजल को फांसी दिए जाने से पहले ही भारत सरकार ने घाटी में कर्फ्यू लगा दिया था दरअस्ल, पाकिस्तानी मीडिया हो या पाकिस्तानी सरकार, अफजल गुरु की फांसी की आड़ में दोनों ने ही कश्मीर में अलगाववाद की आग को हवा देने की कोशिश की है। जम्मू-कश्मीर में एक निर्वाचित और लोकतांत्रिक सरकार का शासन है और हुर्रियत समेत तमाम अलगाववादी गुट हाशिये पर हैं। ऐसे में पाकिस्तान अफजल गुरु की फांसे पर कश्मीरी जनमानस में भावनात्मक उभार के जरिए हाशिये पर पड़े अलगाववादी गुटों को भड़काने की कोशिश कर रहा है। मसलन, पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मौज्जम खान कश्मीरियों के मानवाधिकार की बात कर रहे हैं, तो पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के सदस्य और सिनेट कमिटि ऑन डिफेंस के अध्यक्ष मुशाहिद हुसैन सैयद यह बयान दे रहे हैं कि एक बेगुनाह को फांसी पर लटकाए जाने से न सिर्फ कश्मीरी बल्कि पाकिस्तानी आवाम में गुस्सा है। पाकिस्तान के नापाक मंसूबों का अंदाजा इस बात से भी लगता है कि कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक पाकिस्तान में भारत के मोस्ट वांटेड दुश्मन जमात-उद-दावा के सरगना हाफिज सईद के साथ खुलेआम मंच साझा करते हैं और पाकिस्तान को इस पर कोई ऐतराज नहीं है। पाकिस्तान में यासीन बयान भी देते हैं कि अफजल को फांसी देना भारतीय लोकतंत्र पर धब्बा है और पाकिस्तान को कश्मीर का मामला अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाना चाहिए, तो उनके इस बयान पर जमकर तालियां बजती हैं। जाहिर है यासीन मलिक जैसे लोगों पर नकेल कसते हुए भारत को इस बात से सावधान रहने की जरूरत है कि कश्मीर में अलगाववादी फिर सिर नहीं उठा सकें और घाटी में शांति कायम रहे। इसमें जम्मू-कश्मीर सरकार की भूमिका भी अहम होगी क्योंकि अगर सरकार चूकती है तो घाटी में अलगाववादी एक बार फिर सीमापार की मदद से सिर उठा सकते हैं। सुनील कुमार |