राष्ट्रीय (14/10/2012)
किताबें वही जो दीवाना बना दें - प्रभाकर श्रोत्रिय
शिमला 14 अक्तूबर, 2012... आज शिमला में सम्पन्न ‘अखिल भारतीय साहित्य संवाद-2012’ में लेखक प्रकाशक व पाठक में रिश्तों पर हुई बहस में सभी वक्ताओं ने ग्राम्य अचंलों में पुस्तक संस्कृति के निर्माण पर बल दिया। लेखकों की पीड़ा व प्रकाशकों के सतत शोषण और गायब होते पाठक पर केन्द्रित बहस अत्यन्त विचारोतेजक व सार्थक रही। यह आयोजन इरावती व साहित्य अकादमी ने किया। साहित्य संवाद के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि व आकाशवाणी के महानिदेशक लीलाधर मण्डलोई ने कहा कि देश के ज्वलन्त मुद्दों पर लेखक चुप्पी साधे हुए हैं या फिर मीडिया में पेड न्यूज, राजनीति के दबाव में उसके विचारों को हाशिए पर धकेल दिया है। साहित्य में विचार का स्पेस सिकुड़ता जा रहा है। आज सोशल मीडिया का प्रचार चरम पर है। बलौगस किसी सामन्ती राजा की तरह काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दी की दरिद्रता का इसी से पता चलता है कि आज प्रेमचन्द निराला, मुक्तिबोध के कद के लेखक नदारद है। प्रथम सत्र में संवाद के स्थानीय आयोजक ‘इरावती’ के सम्पादक राजेन्द्र राजन ने कहा कि इरावती ने गत छः वर्ष में हिमाचल के दर्जनों युवा लेखकों को रचनात्मक मंच प्रदान कर उन्हें हिन्दी साहित्य की राष्ट्रीय धारा से जोड़ा है। वरिष्ठ लेखक सुर्दशन वशिष्ठ व साहित्य अकादमी के उप सचिव ब्रजेन्द्र त्रिपाठी ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। दूसरे सत्र यानी ‘कैसे हो’ लेखक प्रकाशन व पाठक के रिश्ते? की अध्यक्षता डा0 प्रभाकर श्रोगिय ने की। आलेख प्रस्तुति में सामायिक प्रकाशन के प्रबन्ध निदेशक महेश भारद्वाज, आलोचक ज्योतिष जोशी, ‘अहा जिन्दगी’ पत्रिका के सम्पादक आलोक श्रीवास्तव व ‘बया’ पत्रिका के सम्पादक, प्रकाशक व लेखक गौरीनाथ ने जहां जमकर लेखकों व प्रकाशकों को कटघरे में खड़ा किया वहीं उन्होंने प्रकाशकों द्वारा थोक खरीद के तहत रिश्वतखोरी को बढ़ावा देकर दोयम दर्ज के पुस्तकों की बिक्री को गलत बताया। गौरीनाथ ने तैश में आकर यहां तक कह डाला कि जिन पुस्तकालयों में सरकारें करोड़ों रुपये फंूंक गोदामों की तरह पुस्तकें ठूंसती रहती है तथा उन्हें कोई नहीं पढ़ता। ऐसे पुस्तकालयों को ‘फूंक’ देना चाहिए। अध्यक्षीय उदबोधन में प्रभाकर श्रोगिय ने कहा कि लेखक पहले अच्छा मनुष्य बनें फिर लेखक। पुस्तकें छापने से पहले उनकी स्तरीयता की जांच जरूरी है। किताबों के चयन का निरपेक्ष मानदण्ड हो तथा भारतीय ज्ञानपीठ साहित्य अकादमी की तर्ज पर प्रकाशक लेखकों को सम्मानजनक रायल्टी दें। प्रकाशक लेखकों से पैसा लेकर पुस्तकें न छापें । पाठक की सोच का भी ध्यान रखा जाए। वही पुस्तकें छपें जो लेखक को दीवाना बनादें। तीसरा सत्र कहानी पाठ पर केन्द्रित था। इसमें हिमाचल के चार युवा कथाकारों ने अपनी कहानियां पढ़ीं। अरूण कुमार शर्मा, ओम भारद्वाज, सुरेश शांडिलय व देव कन्या ठाकुर ने क्रमशः ‘बंस्ती राम’, ‘हड्डी का स्वाद’, ‘काल व जोगणी फाल’ कहानियां पढ़ीं। ज्योतिष जोशी, रामदयाल नीरज, राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक ने अपनी टिप्पणियों में सभी कथाकारों की कहानियों को विचार व संवेदना, कथा व शिल्प के स्तर पर नयी जमीन तोड़ने की रचनाएं बताया। सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ आलोचक व बर्धा में महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में साहित्य विद्यापीठ के अध्यक्ष डा0 सूरज पालीवल ने की। उन्होनें सभी कथाकारों को संभावनाशील बताया और कहा कि सभी कहानियां मौजूदा व्यवस्था व मानवीय संबंधों में गायब होती गर्ममाहट व संवेदना को व्यक्त करती हैं। हिमाचल से चार युवा कथाकारों की रचनाशीलता को मंच प्रदान कर एक सार्थक पहल की है। चैथे सत्र की अध्यक्षता लीलाधर मण्डलोई ने की। काव्य पाठ के इस सत्र में केशव, आत्माराम रंजन, सुरेश सेन निशान्त, अनिल राक्रेशी, ओमप्रकाश साटस्वत, ज्ञानप्रकाश विवेक, गुरमीत बेदी व राजीव गिगार्ते ने काव्यपाठ किया। मण्डलोई ने सभी कवियों की रचनाओं में प्रकृति, पहाड़ व आंचलिकता के पुट के जरिए नयी जमीन तोड़ने की बात कही। उन्होंने मानवीय मूल्यों के विघटन पर चिन्ता जताई। सत्र में ब्रजेन्द्र त्रिपाठी ने धन्यवाद प्रस्ताव ज्ञापित किया। |
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