प्रधानमंत्री ने चीनी क्षेत्र को नियंत्रण मुक्त करने से संबंधित सभी मुद्दों पर विचार करने के लिए प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष डॉ. सी रंगराजन के नेतृत्व में एक समिति गठित की थी। इस समिति ने सभी हितधारकों के साथ कई दौर के सलाह मशविरे और चीनी उत्पादक राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ चर्चा के बाद अपना काम पूरा कर लिया है। यह रिपोर्ट प्रधानमंत्री को 10-10-2012 को प्रस्तुत की गई। इस समिति की एक प्रमुख सिफारिश गन्ना उत्पादक किसानों को अदा की जाने वाली कीमत की मौजूदा व्यवस्था से संबंधित है। समस्या यह है कि पिछले वर्षों में गन्ने की कीमत का बकाया संचित हो गया है और किसानों को अन्य वर्षों के दौरान कभी कम तो कभी ज्यादा कीमत मिलती रही है। वर्तमान व्यवस्था के अंतर्गत हर साल केंद्र द्वारा वाजिब और लाभप्रद मूल्य (एफआरपी) का ऐलान किया जाता है। यह ऐलान सीएसीपी की सलाह पर गन्ना नियंत्रण आदेश के अंतर्गत किया जाता है। लेकिन उत्तर भारत के कई राज्यों द्वारा राज्य के कानून के अंतर्गत स्टेट एडवाइज्ड प्राइस (एसएपी) का भी ऐलान किया जाता है। आम तौर पर एसएपी, एफआरपी के मुकाबले काफी ज्यादा होता है और वही लागू मूल्य मान लिया जाता है। इस व्यवस्था के स्थान पर समिति ने प्रस्ताव किया है कि गन्ना सप्लाई के समय किसान को एफआरपी के बराबर न्यूनतम मूल्य दे दिया जाये। वर्तमान में यही व्यवस्था चल रही है। इसके अलावा बाद में, छमाही आधार पर संबंद्ध राज्य सरकार चीनी और उसके उप-उत्पादों का एक्स मिल मूल्य घोषित करेगी। किसान को उसके द्वारा सप्लाई किए गए गन्ने से तैयार चीनी और उसके उप-उत्पादों का 70 प्रतिशत मूल्य पाने का अधिकार होगा। इस प्रकार से जितनी राशि की गणना की जायेगी उसमें से उसे पहले ही अदा की जा चुकी रकम घटाकर किसान को अदायगी कर दी जायेगी। चीनी के मूल्य में लगाई गई पूंजी पर प्रतिलाभ भी शामिल है अत: किसान को लाभ में भी हिस्सा मिलेगा। जब इस तरह की व्यवस्था लागू हो जायेगी तो राज्य सरकारें एसएपी की घोषणा करना बंद कर देंगी। इस समिति ने सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के अंतर्गत बाजार से कम कीमत पर वसूली जाने वाली लेवी की चीनी की व्यवस्था खत्म करने की सिफारिश की है। अत: भविष्य में राज्य सरकारों को सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की चीनी का मूल्य तय करने की इजाजत नहीं होगी। लेकिन राज्यों को सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की चीनी की ढुलाई और लेवी की चीनी की कीमत तथा बाजार में बिकने वाली चीनी की कीमत में अंतर के लिए वर्तमान सब्सिडी व्यवस्था जारी रहेगी। इसमें खुले बाजार में बिकने वाली चीनी और लेवी की चीनी की कीमतों में अंतर के कारण निहित सब्सिडी का वर्तमान बढ़ा हुआ स्तर शामिल है। इससे चीनी उद्योग को सरकार के कल्याण कार्यक्रम का बोझ नहीं उठाना पड़ेगा और यह व्यवस्था पर परोक्ष रूप से किसान और सामान्य ग्राहकों-दोनों के लिए लाभप्रद होगी क्योंकि चीनी उद्योग लेवी की चीनी की लागत किसानों और ग्राहकों दोनों को देगा। समिति ने वर्तमान नियंत्रित तंत्र के साथ गैर-लेवी चीनी जारी करने की जरूरत को खत्म करने की सिफारिश की है, क्योंकि स्टॉक जमा होने के कारण इससे फैक्टरियों का अतिरिक्त खर्च होता है समिति ने सिफारिश की है कि गन्ना आरक्षित भूमि को अंतत: खत्म कर दिया जाए और किसानों तथा मिलों के बीच करार की अनुमति दी जाए, ताकि गन्ने की निश्चित आपूर्ति के लिए प्रतिस्पर्धा बाजार उत्पन्न हो सकें, जो किसानों और अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के हित में है। इसके बावजूद यदि कुछ राज्य इसे कुछ समय के लिए जारी रखना चाहते है, तो वे ऐसा कर सकते है, लेकिन उन्हें सुनिश्चित करना होगा कि आरक्षित भूमि को कम से कम तीन से पांच वर्ष के भीतर खत्म कर दिया जाए, ताकि उद्योग इसके साझेदार बन सकें। इसके अलावा जहां भी और जब भी कोई राज्य आरक्षित भूमि को खत्म करना चाहेगा, तो केन्द्र को 2 मिलों के बीच कम से कम दूरी के नियम को हटाना होगा। विदेश व्यापार के मामले में समिति ने पूर्ण रूप से रोक और मात्रात्मक प्रतिबंधों के साथ औसतन 5 प्रतिशत से 10 प्रतिशत के साधारण शुल्क स्तर के साथ एक स्थायी नीति शासन पद्धति की वकालत की है। समिति ने जूट पैकेजिंग की अनिवार्यता को खत्म करने की भी सिफारिश की है। समिति ने शीरे के मामले में, अनेक राज्यों में प्रचलित, मुक्त आवाजाही और अंतिम उपयोग आधारित आवंटित कोटा को खत्म करने का समर्थन किया है, ताकि ये एक राष्ट्रीय बाजार का गठन हो सके और इस बहुमूल्य गौण उत्पाद के लिए बेहतर कीमतें मिल सके और साथ ही इसका इस्तेमाल बढ़ सके। समिति के सदस्यों में एनडीएमए के सदस्य टी. नंदकुमार, कृषि लागत और मूल्य आयोग के अध्यक्ष डॉ. अशोक गुलाटी, मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. रघुराज राजन, खाद्य और सार्वजनिक वितरण सचिव सुधीर कुमार, कृषि और सहकारिता विभाग के सचिव आशीष बहुगुणा और आर्थिक सलाहकार परिषद के तत्कालीन सचिव के रूप में संयोजक डॉ. के.पी.कृष्णन शामिल थे। |