आर्थिक मामलों की मत्रिमंडलीय समिति ने आज एकीकृत बाल विकास सेवा योजना (आईसीडीएस) को मजबूत बनाने और उसका पुनर्गठन करने की मंजूरी प्रदान की है – 12वीं पंचवर्षीय योजना और मिशन प्रणाली में आईसीडीएस योजना का कार्यान्वयन जारी रखना। तीन वर्ष से कम आयु के बच्चों, मातृत्व देखभाल और जल्दी बचपन देखभाल शिक्षा (ईसीसीई) पर वित्तीय मानदंडों / आवंटनों और परिणामों में आवश्यक परिवर्तनों के साथ, जैसा कि नवीकरण की संभावना के साथ राज्यों को गुंजाइश देते हुए ईएफसी ने सिफारिश की है, इसे लागू करने की व्यापक रूप रेखा के अनुसार ध्यान केन्द्रित करने के लिए कार्यक्रमजन्य, प्रबंधकीय और संस्थागत सुधारों को विस्तृत और संशोधित सेवाओं के साथ शुरू किया जाए। प्रथम वर्ष 2012-13 में 200 उच्च भारिता जिलों से शुरू करते हुए तीन वर्षों में सुदृढ़ और पुनर्गठित आईसीडीएस शुरू की जाए। दूसरे वर्ष (2013-14) में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र के विशेष श्रेणी राज्यों के जिलों सहित 200 अतिरिक्त जिलों को तथा 12वीं पंचवर्षीय योजना के तीसरे वर्ष (2014-15) में शेष 243 जिलों को इसमें शामिल किया जाएगा। 12वीं पंचवर्षीय योजना में वित्तीय व्यय 1,23,580 करोड़ रूपये होने का अनुमान है। आईसीडीएस योजना की मजबूती और पुनर्गठन से – 1) 0 – 3 वर्षों में कुपोषण ग्रस्त बच्चों में 10 प्रतिशत अंक तक रोकथाम और कमी लाई जा सकेगी। 2) 6 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों में प्रारंभिक विकास और समझ के परिणामों में वृद्धि होगी। 3) लड़कियों और महिलाओं की देखभाल और पोषण में सुधार तथा युवा बच्चों, लड़कियों और महिलाओं में व्याप्त एनीमिया को घटाकर 1/5 किया जा सकेगा। आईसीडीएस 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए एक सर्वव्यापी कार्यक्रम है। वर्तमान में इससे 9.65 करोड़ लाभार्थी फायदा उठा रहे हैं जिनमें से 7.82 करोड़ 6 वर्ष से कम आयु के बच्चे हैं और 1.83 करोड़ गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताएं हैं। सेवाओं में सुधार से लाभार्थियों की संख्या बढ़ने की संभावना है। आईसीडीएस 1975 में शुरू की गई थी जो 2005-06 के बाद व्यापक रूप से सर्वव्यापी बनी और अंत में 2008-09 में 7076 अनुमोदित परियोजनाओं और 14 लाख आंगनवाड़ी केन्द्रों के माध्यम से पूरे देश में इसका विस्तार हुआ। सभी के लिए लागू होने के बाद यह सहवर्ती मानव और वित्तीय संसाधनों के अनुरूप नहीं रही जिसके परिणाम स्वरूप कार्यक्रमजन्य, प्रबंधकीय और संस्थागत अंतरों में वृद्धि हुई और आईसीडीएस को मजबूत बनाने और इसका पुनर्गठन करने की आवश्यकता महसूस की गई। |