राष्ट्रीय (28/05/2010)
इटली का नृत्य वैले फैला विश्व में....
जिस प्रकार एक समय पूरे विश्व पर अंग्रेजी शासन का परचम लहराता था। वैसे ही कला जगत में पूरे विश्व में अगर अपनी पहचान बनाई है तो वह नृत्य कला है ”वैले“। वैसे तो यह नृत्य कला रूस से फैली लेकिन इसका जन्म सर्वप्रथम इटली के दरबारी नृत्य के रूप में 15 वीं शताब्दी में हुआ। परन्तु इस कला को जल्द ही फ्रांस और फ्रांसिस जार विलासिता का प्रतीक बनाकर वैले का लुत्फ उठाने लगे। धीरे-धीरे वैले फैलने लगा और डेनमार्क होते हुए यह अपनी मंजिल रूस जा पहुंचा। रूस से यह नृत्य पूरे विश्व में फैला उन दिनों रूस पर भी विलासी ज़ार राज्य करते थे वैले उन ज़ारों के दरबार की रौनक बनकर फलता और फूलता रहा। यह नृत्यशैली एकल तथा सामूहिक दोनों ही रूपों में शास्त्रीय नृत्यों की भांति अपने आप को संगठित कर चुकी थी। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में रूस में क्रांति हुई और सब कुछ बदल गया सभी ज़ार मार दिए गए या भाग गए। कामगारों की सरकार आई जार से सम्बन्धित सभी चीजें नष्ट कर दी गई लेकिन वैले जैसी नृत्यशैली को और उभारा गया बड़े-बड़े महलों को प्रेक्षागृह बनाकर वैले का विस्तार किया गया। यह नृत्यशैली बड़े-बड़े समूह में पूरे रूस में फैलने लगी। धीरे-धीरे यह सामूहिक नृत्य कला प्रतिष्ठित रूप में पूरे विश्व में छाने लगी या यूं कहा जाय कि यूरोप के दिल से निकलकर यह कला विश्व का प्रेम बन गई है। रूस के मास्को शहर में स्थित बोलशोई थियेटर ने इस कला में बहुत शोहरत हासिल की इस कम्पनी में एक हजार से ज्यादा नर्तक-नर्तकियां काम करते थे और एक-एक वैले में लगभग 200 कलाकरों का समूह एक साथ नृत्य करता था। अगर विश्व के अन्य भागों की बात वैले के विस्तार की की जाए यह कहना भी गलत नहीं होगा कि विश्व में प्रसिद्धि पा रहा माॅडर्न डाँस भी वैले की ही देन है। ईसा डोरा डेकन और मार्थाग्राहम जैसी माॅर्डन डाँसर ने पहले वैले की ही शिक्षा ली थी और बाद में उसे अमेरिकन डांस का नाम देने के लिए वैले की रूप-रेखा को तोड़ कर आधुनिकता का नाम दिया गया। 20वीं शताब्दी में अमेरिकन डाँसर को तैयार करने के लिए पहले वैले की शिक्षा ही दी जाती थी। क्योंकि माॅर्डन डांस में ऐसी तकनीक कहीं भी नहीं थी जो सीधे अपनी शैली के नर्तक तैयार करे। क्योंकि 20वीं शताब्दी के अन्त तक भी अमेरिका में वैले का ही बोलबाला था। अमेरिकन वैले कम्पनी न्यूयाॅर्क वैले कम्पनी, अमेरिकन वैले थियेटर आदि। आधुनिक युग के साथ कई स्थानों में वैले में भी बदलाव आया कई देशों में कंटेम्परेरी वैले की शुरूआत हुई जिसका स्वरूप वैले जैसा ही था। परन्तु इसमें शास्त्रीयता को कुछ बदल दिया गया था। यह प्रयोग भी अमेरिकन कोरियोग्राफर तायला थाॅर्प द्वारा किया गया। लगभग 1980 में तायला थाॅर्प ने अमेरिकन वैले थियेटर में डायरेक्टर का कार्यभर सम्भाला और वैले के क्षेत्र में प्रायोगिक कार्य शुरू किया। जोफैटी वैले कम्पनी ने भी प्रायोगिक वैले को शुरू किया तथा साथ में किरोव वैले पैरिस ओपेरा ”किंग्स ताइन ओपेरा“ नीदरलैंड वैले कम्पनी आदि में कंटेम्परेरी वैले होने लगे। परन्तु वैले की शास्त्रीयता को भी बनाए रखे जाने का काम रूसी कम्पनियों द्वारा जारी था। रूस में बुलशोई तथा माली दोनों में शुद्ध वैले नृत्य की शिक्षा जारी रही। इसका कारण था कि जब दुनिया में नृत्य के क्षेत्र में क्रांति हुई तो भी वैले की शुद्धता कायम रही। वैले की अलग पहचान बनाने में बोलशोई थियेटर का योगदान रहा है। स्वानलेक नामक नृत्य नाटिका ने तो पूरे विश्व को चकित कर दिया। शब्द ”वैले“ का प्रयोग भी ऐतिहासिकता को दर्शाता है। यह शब्द फ्रैंच भाषा से नृत्य में लिया गया। जिसका सम्मिश्रण इटली की भाषा के शब्द बैलेयर से लिया जिसका मतलब होता है नृत्य के लिए। अलग-अलग नामों का मतलब केवल एक ही था नृत्य। परन्तु शब्द ”वैले“ को सही माना गया। यही शब्द विश्व के अन्य देशों की नृत्य कम्पनियों ने अपनाया। विश्व के नक्शे में इन कम्पनियों के नाम जैसे राॅयल डेनिस वैलेट, रशियन वैले, रशियन एम्पायर बैले, न्यूयाॅर्क सिटी वैलेट, अमेरिकन वैले थियेटर उभरने लगे। यहां तक कि भारत के कई शहरों में भी वैले शब्द के प्रयोग के साथ नई नृत्य मंडलियों का जन्म हुआ। अन्य देशों के नर्तक भी रूस आकर वैले की शिक्षा ग्रहण करने लगे और अपने देश आकर इस कला का प्रचार-प्रसार करते। 20वीं शताब्दी तक यह कला विश्व की सबसे अग्रणी नृत्य कला समझी जाने लगी थी। 19वीं शताब्दी के अन्त में विश्व की व्यावसायिक राजधानी कहलाने वाले लंदन शहर में भी वैले का ही बोलबाला था। रूस की नृत्यांगनाएं लंदन शहर में व्यावसायिक रूप से वैले नृत्य का प्रदर्शन कर रही थी। इस नृत्य में प्रयोग में लाई जाने वाली वेशभूषा तथा इसके शू इस नृत्य में आकर्षण पैदा करते थे। साथ ही शरीर की विभिन्न क्रियाओं के साथ शरीर का संतुलन सभी को आश्चर्यचकित करता है। और इसके साथ प्रयोग में लाया जाने वाला संगीत इसकी प्रस्तुति को और निखारता है। भारतीय नृत्य के क्षेत्र में भी वैले शब्द का प्रयोग 20वीं शताब्दी में हुआ। परन्तु यहां पर वैले नृत्य की वह तकनीक नहीं अपनाई गई। अपितु ”नृत्य नाटिका“ को ही वैले का जामा पहनाया गया। उदय शंकर जी ने सर्वप्रथम वैले नृत्यांगना अन्ना पावलोवा के साथ नृत्य किया और भारत आकर नृत्य नाटिका के प्रयोग शुरू किए। बड़ी-बड़ी नृत्य नाटिकाओं को वैले कहा जाने लगा। सामूहिक नृत्य नाटिकाओं को नया नाम मिला। उदय शंकर जी से शिक्षा प्राप्त करने के बाद उनके अनेक शिष्यों ने देश के विभिन्न भागों में वैले कम्पनियों की शुरूआत की। प्रभात गांगुली ने बम्बई में लिटिल वैले ग्रुप और उसके पश्चात सचिन शंकर वैले ग्रुप भी बम्बई में दिल्ली में नाट्य वैले सेंटर, तथा नरेन्द्र षर्मा द्वारा भारतीय कला केन्द्र तथा भूमिका क्रिएटिव वैले सेंटर इन सभी कम्पनियों के अलावा देश की अन्य नृत्य कम्पनियां भी वैले शब्द का प्रयोग करने लगी। यहां पर जब भी वैले नृत्य जैसी तकनीक नहीं अपनाई जाती थी। परन्तु सामूहिक नृत्यकार अपनी संरचना को वैले कहने लगे थे। आज भी शास्त्रीय नृत्यकार और संस्थाएं भी इस शब्द का प्रयोग कर रही थी और इस समय भी कर रही हैं। सरकारी संस्थाओं द्वारा वैले फेस्टीवल करवाना भी इस शब्द की ऐतिहासिकता को दर्शाता है। -डा. कृष्ण कुमार शर्मा 9953906652 |
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