नई दिल्ली 05 मई। उच्चतम न्यायालय ने नार्को टेस्ट एवं ब्रेन मैपिंग के संबंध में कहा है कि जब इस तकनीक का उपयोग आरोपी की मर्जी के बगैर होता है तो यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर दखलदांजी है। मुख्य न्यायधीश केजी बालाकृष्णन की पीठ के अनुसार इन तकनीकों का इस्तेमाल किसी आरोपी, संदिग्ध या गवाह की मर्जी के खिलाफ किया जाना उसकी स्वतंत्रता को हनन करती है। न्यायालय ने कहा है कि आरोपी, संदिग्ध या गवाह की मर्जी के बिना किये गये नार्को टेस्ट और ब्रेन मैंपिंग के निस्कर्ष को सबूत का हिस्सा नहीं माना जाना चाहिए। गौरतलब है कि इस संबंध में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें नार्को टेस्ट, ब्रेन मैंपिंग अथवा झूठ पकड़ने वाली मशीन को असंवैधानिक करार दिया था। उच्चतम न्यायालय ने उस आदेश को सुरक्षित रख लिया था और आज इस संदर्भ में फैसला सुनाते हुए कहा है कि आरोपी की मर्जी के बिना उनपर इन तकनीकों का इस्तेमाल किया जाना उसकी स्वतंत्रता पर दखलंदाजी है। न्यायालय ने कहा है कि यदि आरोपी की रजामंदी पर जांच के लिए उन तकनीकों का इस्तेमाल जांच एजंेसिया करती है तो उसके बयान को आगे की कार्रवाई के लिए उपयुक्त माना जायेगा। जबकि केन्द्र सरकार का मानना है कि इन तकनीकों का इस्तेंमाल किया जाना चाहिए क्योंकि यह जांच का एक हिस्सा है। लेकिन अब शीर्ष अदालत ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए आरोपी के अधिकारों का हनन बताया है। शीर्ष अदालत का फैसला बहुत मायने रखता है। अदालत के इस फैसले से जांच एजेंसियों को जबरदस्त झटका लगा है।
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