विशेष (05/08/2024) 
कॉलेजों में बने एससी,एसटी, ओबीसी एडमिशन सेल, और एडमिशन कोटा पूरा न करने वाले कॉलेजों की ग्रांट रोकने की मांग।
 फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फ़ॉर सोशल जस्टिस (शिक्षक संगठन, दिल्ली विश्वविद्यालय) के चेयरमैन व पूर्व डीयू एडमिशन कमेटी के सदस्य डॉ. हंसराज सुमन ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह को पत्र लिखकर मांग की है कि शैक्षिक सत्र -2024-25 में  दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों में यूजी, पीजी, पीएचडी, बीएड, एमएड, बी.लिब, एम.लिब, बीएएलएड, डिप्लोमा कोर्स, सर्टिफिकेट कोर्स आदि पाठ्यक्रमों में एससी, एसटी, ओबीसी, पीडब्ल्यूडी, अनरिजर्व व ईडब्ल्यूएस कोटे में  एडमिशन प्रक्रिया शुरू करने से पहले विश्वविद्यालय प्रशासन डीयू के विभागों व कॉलेजों के प्रिंसिपल / संस्थानों के निदेशकों को सर्कुलर जारी करके उनसे  पिछले पांच वर्षों के आंकड़े मंगवाकर उनकी जांच करवाएँ, पता चलेगा कि कॉलेजों ने अपने यहाँ स्वीकृत सीटों से ज्यादा एडमिशन दिया लेकिन उन्होंने सामान्य सीटों की एवज में एससी/एसटी, ओबीसी, ईडब्ल्यूएस व पीडब्ल्यूडी कोटे की सीटों को नहीं भरा। उन्होंने बताया है कि कॉलेजों ने सीटों का ब्यौरा देने के लिए अभी तक कॉलेज वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया है । बता दें कि गत वर्ष भी नार्थ कैम्पस व साउथ कैम्पस के बहुत से कॉलेजों में विभिन्न पाठ्यक्रमों में सीटें खाली रह गई थीं। उन्होंने पत्र में यह भी लिखा है कि कुछ कॉलेज यूजीसी व शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी आरक्षण संबंधी दिशा निर्देशों का उचित तरीके से पालन नहीं करते। 

             डॉ. सुमन ने पत्र में लिखा है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में लगभग-80 विभाग हैं जहाँ स्नातकोत्तर डिग्री, पीएचडी, सर्टिफिकेट कोर्स, डिप्लोमा कोर्स, डिग्री कोर्स आदि कराए जाते हैं। इसी तरह से दिल्ली विश्वविद्यालय में तकरीबन 79 कॉलेज हैं जिनमें स्नातक, स्नातकोत्तर की पढ़ाई होती है। इन कॉलेजों व विभागों में हर साल स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर पर  ईडब्ल्यूएस कोटा बढ़ने के बाद लगभग 72 हजार से अधिक छात्र-छात्राओं के प्रवेश होते हैं। डॉ. सुमन ने बताया है कि डीयू कॉलेजों में हर साल स्वीकृत सीटों से 10 फीसदी ज्यादा एडमिशन होते हैं। उन्होंने यह भी बताया है कि कॉलेज अपने स्तर पर 10 फीसदी सीटें बढ़ा लेते हैं। बढ़ी हुई सीटों पर अधिकांश कॉलेज आरक्षित वर्गों की सीटें नहीं भरते। उन्होंने बताया है कि पिछले चार साल से सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए 10 फीसदी आरक्षण दिया गया है। इससे 25 फीसदी सीटों का इजाफा हो चुका है। इन वर्गों के छात्रों की सीटें भी खाली रह जाती हैं।  इस तरह से विश्वविद्यालय के आंकड़ों की माने तो 72 हजार से ज्यादा सीटों पर हर साल एडमिशन होता है फिर भी एससी /एसटी, ओबीसी व पीडब्ल्यूडी छात्रों की सीटें खाली रह जाती है। उनका कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन आरक्षित सीटों पर भी प्रवेश के लिए प्राप्तांक का अधिक पर्सेंटेज रखते हैं जिससे आरक्षित वर्ग का छात्र प्रवेश लेने से वंचित रह जाता है। लेकिन परसेंटेज कम नहीं की जाती जिसके कारण सीटें खाली रह जाती है । 

                           डॉ. सुमन ने यह भी बताया है कि डीन स्टूडेंट्स वेलफेयर आरक्षित सीटों को भरने के लिए कई स्पेशल स्पॉट राउंड चलाते हैं लेकिन उसमें जो कट ऑफ जारी की जाती है उस पर मामूली छूट दी जाती है जिससे एससी, एसटी, ओबीसी कोटे की सीटें कभी पूरी नहीं भरी जाती। ये सीटें हर साल खाली रह जाती है। गत वर्ष भी विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा आरक्षित सीटों को भरने के लिए कई "स्पेशल स्पॉट राउंड " चलाये गए लेकिन कट ऑफ कम नहीं किए जाने के कारण आरक्षित वर्गो के विद्यार्थियों की सीटें खाली रह गईं। डीन स्टूडेंट्स वेलफेयर यदि कट ऑफ कम कर दे सीटों को भरा जा सकता था। उनका कहना है कि इस बार यदि विश्वविद्यालय प्रशासन एडमिशन से पूर्व कॉलेजों से स्वीकृत सीटों के आंकड़े मंगवा ले और हर लिस्ट के बाद सीटों का ब्यौरा रखे तो काफी हद तक समस्या का समाधान हो सकता है। यदि उसके बाद भी कॉलेज आरक्षित कोटा पूरा नहीं करते हैं तो उनका अनुदान रोक देना चाहिए। उनका यह भी कहना है कि एडमिशन लेने वाले तमाम छात्रों के नाम की सूची कॉलेज व विश्वविद्यालय वेबसाइट पर डाला जाए। उन्होंने यह भी बताया है कि एससी/एसटी व ओबीसी के बहुत से छात्र कॉलेज छोड़कर चले जाते है या बीच में (ड्रॉप आउट) छोड़कर चले जाते हैं, उसके भी आंकड़े कॉलेज नहीं देता है। डॉ. सुमन ने कॉलेजों से छात्रों की सीटों का बैकलॉग, शॉर्टफाल व ड्रॉप आउट स्टूडेंट्स का डाटा मंगवाने की भी मांग की है जिससे एडमिशन की प्रक्रिया आसान हो जाएगी। 
 
           कॉलेजों में बने सेल - डॉ. सुमन ने कुलपति को यह भी बताया है कि यूजीसी का सख्त निर्देश है कि हर कॉलेज में एससी, एसटी और ओबीसी सेल की स्थापना की जाये। एडमिशन की प्रक्रिया को देखने के लिए मोनेटरिंग कमेटी बनाई जाए, इसके अलावा छात्रों, कर्मचारियों व शिक्षकों की समस्याओं के समाधान करने हेतु ग्रीवेंस कमेटी बने। उन्होंने बताया है कि कुछ कॉलेजों ने कमेटियों /सेल की स्थापना की है। इनको चलाने के लिए आरक्षित वर्ग से शिक्षकों की नियुक्ति भी की है लेकिन ये सेल कोई काम नहीं करती हैं। सेल में प्रिंसिपलों द्वारा ऐसे शिक्षकों की नियुक्ति की जाती है जो उनके चहेते होते हैं। उन्होंने यह भी बताया है कि प्रत्येक कॉलेज में आरक्षित वर्गो के शिक्षकों/कर्मचारियों/छात्रों के लिए ग्रीवेंस सेल बनाया गया है। इस सेल का कार्य आरक्षित वर्ग के व्यक्तियों के साथ होने वाले जातीय भेदभाव, नियुक्ति, पदोन्नति व प्रवेश आदि समस्याओं का समाधान समय-समय पर कराना है। साथ ही समय-समय पर यूजीसी को आरक्षित शिक्षकों/कर्मचारियों/छात्रों की रिपोर्ट तैयार कर यूजीसी, शिक्षा मंत्रालय, संसदीय समिति व एससी/एसटी कमीशन को उनके आंकड़े भेजना आदि है। उनका कहना है कि यदि ग्रीवेंस सेल सही ढंग से अपनी भूमिका का निर्वाह करे तो कॉलेजों में होने वाले एडमिशन, अपॉइंटमेंट और प्रमोशन संबंधी कोई समस्या न हो, लेकिन ये सेल प्रिंसिपलों के इशारों पर कार्य करते हैं।

                      फोरम ने कुलपति को लिखे पत्र में यह भी मांग की है कि शैक्षिक सत्र -2024-25 की एडमिशन प्रक्रिया शुरू करने से पूर्व छात्रों के कॉलेजों/ विभागों से आंकड़े मंगवाये। उनका कहना है कि यदि संभव हो तो दिल्ली यूनिवर्सिटी अपने स्तर पर कॉलेजों के लिए अलग से एक स्टूडेंट्स एडमिशन मॉनिटरिंग कमेटी गठित करे। इस कमेटी में आरक्षित वर्गों के शिक्षकों को ही रखा जाए। कमेटी इन कॉलेजों का दौरा कर शिक्षकों/कर्मचारियों/छात्रों से उनकी समस्याओं पर बातचीत करे। उन्होंने बताया है कि इन कॉलेजों में सबसे ज्यादा समस्या शिक्षकों का रोस्टर, स्थायी नियुक्ति, पदोन्नति के अलावा कर्मचारियों की नियुक्ति, पदोन्नति, पेंशन के अतिरिक्त छात्रों के प्रवेश संबंधी समस्या, छात्रवृत्ति का समय पर ना मिलना, रिमेडियल क्लासेज न लगना, सर्विस के लिए स्पेशल क्लासेज, स्पेशल कोचिंग एससी, एसटी व ओबीसी के छात्रों के सामने आती हैं। डॉ सुमन का कहना है कि इन समस्याओं पर छात्रों से बातचीत करे साथ ही कॉलेजों में जिन सुविधाओं का अभाव है उस पर एक रिपोर्ट तैयार करे। कमेटी इस रिपोर्ट को यूजीसी, एमएचआरडी, एससी, एसटी कमीशन, संसदीय समिति को भेजे। इसके अलावा इस रिपोर्ट को मीडिया में सार्वजनिक करे ताकि आम आदमी को भी पता चल सके कि विश्वविद्यालयों/कॉलेजों में किस तरह से भेदभाव की नीति अपनाई जाती है।
 
                        फोरम ने कुलपति से यह भी मांग है कि यूजीसी / शिक्षा मंत्रालय द्वारा समय-समय पर केंद्र सरकार के आरक्षण संबंधी सर्कुलर जारी किया जाता है ताकि इन सुविधाओं का लाभ आरक्षित वर्गों के उम्मीदवारों को मिले। इस प्रक्रिया के लिए विश्वविद्यालय/कॉलेज/संस्था को अपनी वेबसाइट पर आरक्षण संबंधी सूचना अपलोड करना होता है, लेकिन कोई भी कॉलेज छात्रों के प्रवेश संबंधी आंकड़े, शिक्षकों के खाली पदों की संख्या, कर्मचारियों के पदों की जानकारी आदि को अपनी वेबसाइट पर नहीं डालते हैं, जबकि यूजीसी हर साल आरक्षण संबंधी जानकारी को वेबसाइट पर अपलोड़ करने संबंधी सर्कुलर जारी करती है। इस संदर्भ में भी कॉलेज प्रिंसिपलों को भी सर्कुलर जारी किया जाये और उनसे कॉलेज के एडमिशन बुलेटिन व प्रोस्पेक्टस की कॉपी मंगवाई जाए ताकि कितने छात्रों का इस वर्ष एडमिशन होगा। साथ ही उन्होंने कॉलेज प्रोस्पेक्टस को अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी में भी प्रकाशित कराने की मांग की है। 
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