विशेष (10/05/2024) 
अक्षय तृतीया का माहात्म्य एवं महत्व @ आचार्य डॉ. दीपक शर्मा
सनातन धर्म एवं संस्कृति में हर पर्व और त्यौहार का एक सामाजिक ,पौराणिक ,आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व तथा माहात्म्य होता है. नक्षत्र ,तिथि वार ,कारण एवं योग की युति के अनुसार ज्योतिषीय गणना ही इन उत्सवों का आधार होती हैं।  

वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है। अक्षय तृतीया पर्व को इसी क्रम में सर्वोपरि स्थान प्राप्त है।  इस शुभ दिवस एवं तिथि पर इतनी शुभ घटनाएं घटित हुई हैं कि अक्षय तृतीया को अभूझ मुहूर्त दिवस भी कहा जाता है। इस दिन किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए किसी भी मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती।

अक्षय तृतीया को भगवान विष्णु जी,देवी  माता लक्ष्मी जी के तथा भगवान कुबेर की आराधना  अक्षत (चावल) ,पुष्य ,मिष्ठान, दीप से पूजन ,पीत वस्त्र तथा गंगा जल एवं दान करने योग्य धन धान्य से पूजा अर्चना की जाती है।  

अक्षय का शाब्दिक अर्थ होता है जिसका कभी क्षय न हो अर्थात जो हमेशा उन्नति की अवस्था में ही रहे और बढ़ती रहे।  

अक्षय तृतीया एक महत्वपूर्ण पर्व है परन्तु आज हम इसका महत्व बस सोने की खरीदारी तक ही  सीमित कर चुके हैं और इस महान पर्व का व्यवसायीकरण बहुत सुनियोजित तरीके से हो चुका है।  इस पर्व का माहात्म्य  तथा महत्व सम्पूर्ण विश्व को समझना होगा और हर सनातनी को जानना होगा।
इसका इतना महत्व क्यों है ।आप स्वयं देखिए।

1.आज ही की तिथि को ब्रह्माजी के पुत्र *अक्षय कुमार* का अवतरण हुआ था।
2. आज ही की तिथि को  *माँ अन्नपूर्णा* का अवतरण हुआ था।
3.आज ही की तिथि  को चिरंजीवी अमर  भगवान  परशुराम जी का जो भगवान विष्णु जी के छठे अवतार हैं का जन्म हुआ था। इसलिए अक्षय तृतीया को  भगवान *परशुराम जी के जन्मोत्सव* के रूप में भी मनाया जाता है।
4. आज ही की तिथि को भगवान शिव जी से भगवान *कुबेर* को अक्षय खजाना मिला था तथा अलकापुरी राज्य को शासित करने का अधिकार प्राप्त हुआ था।
5.आज ही  की तिथि को भगवान श्री विष्णु जी के चरणों से *माँ गंगा* का धरती पर अवतरण हुआ था।
6.आज ही की तिथि को सूर्य भगवान ने पांडवों को कभी भी अन्न तथा जल का क्षय न होने वाला *अक्षय पात्र* दिया था । जिसमे द्रोपदी भोजन पकाती थी और भगवान श्री कृष्ण ने चावल का दाना खाया था।
7. आज ही की तिथि महाभारत का *युद्ध समाप्त* हुआ था।
8.आज ही की तिथि को महर्षि वेदव्यास जी ने *महाकाव्य महाभारत की रचना*  भगवान गणेश जी  के साथ शुरू की थी ।
9.आज ही की तिथि को प्रथम तीर्थंकर *आदिनाथ ऋषभदेव जी भगवान* के 13 महीने का कठिन उपवास का *पारणा इक्षु (गन्ने) के रस से किया* था।
10.आज ही की तिथि को प्रसिद्ध तीर्थ स्थल *श्री बद्री नारायण धाम* का कपाट खोले जाते है।
11. आज ही की तिथि को  वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में * भगवान श्री  बाँके बिहारी जी के चरणों* के दर्शन होते है।
12.आज ही की तिथि को जगन्नाथ भगवान के सभी *रथों को बनाना प्रारम्भ* किया जाता है।
13.आज ही की तिथि को प्रभु आदि शंकराचार्य जी ने *कनकधारा स्तोत्र* की रचना की थी।
14 .आज ही की तिथि से सतयुग त्रेता तथा द्वापर युग का आरम्भ हुआ था इसलिए इसे युगादि तिथि भी कहते हैं।
15 आज ही की तिथि को भगवान विष्णु के अन्य अवतार में नर -नारायण तथा हयग्रीव का धरा पर अवतरण हुआ था।
ये सब सुखद घटनाएं प्रमाणित करती हैं कि परम पर्व अक्षय तृतीया अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है कोई भी शुभ कार्य का प्रारम्भ किया जा सकता है।
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