विशेष (29/04/2024)
कुंडली में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष त्रिकोण और उनका महत्व- आचार्य मनोज वर्मा
हर भाव का अपना भाग्य उसके ही उत्तरोतर वृद्धि भाव अर्थात त्रिकोण के अंतिम कोण में देखा जाता है. जैसे धर्म त्रिकोण के लिए हम लग्न, पंचम और नवम भाव को देखते हैं यानि भाग्यभाव, अर्थ त्रिकोण का भाग्य कर्मभाव, काम त्रिकोण का भाग्य लाभ भाव इच्छापूर्ति और मोक्ष त्रिकोण का भाग्य व्यय भाव बनता है. यदि हम किसी जातक की जन्म कुंडली के केंद्र भावों में कोई भी ग्रह न हों तो यह जातक के लिए अच्छा नहीं है कह देते हैं. किन्तु क्या हमने केंद्र भावों को सही से जाना है. यहां लग्न भाव से जातक के विषय में जानकारी मिलती है उसके रूप रंग हावभाव सामाजिक रुतबा। लग्न यानि जातक के सुख के लिए हम चतुर्थ भाव और देखते हैं कि उसकी माँ केसी है, दसवीं बारहवीं तक की शिक्षा केसी होनी चाहिए आदि आदि बहुत सी सुख की परिकल्पनाएं जातक के विषय में हम इस भाव से कर डालते हैं. अब जरा गौर से जातक के जन्म का कारण देखिए जातक का जन्म क्यों हुआ है जन्म लग्न राशि किस तत्व की है और उसका स्वभाव क्या है. जन्म का अंतिम सत्य मृत्यु है ये बात हम सब बहुत अच्छे से जानते हैं और हमारा जन्म हमारे पूर्व जन्मों के प्रारब्ध में किये गए पुण्य कर्मों का ही प्रतिफल है जिस के कारण हमने इस कर्म भूमि पर जन्म लिया है. अब हम लग्न से सुखभाव को एक बार फिर से देखते हैं तो यहां हमे लग्न यानि धर्म त्रिकोण के प्रथम भाव का सुख अर्थात मोक्ष त्रिकोण के प्रथम भाव के रूप में नजर आने लग जाएगा। अब जरा गौर से मोक्ष त्रिकोण के सुखभाव को यानि सप्तम भाव पर भी नजर डाल लेनी चाहिये। सप्तमभाव काम त्रिकोण का दूसरा भाव भी है और यह जातक की पत्नी (अर्धांगिनी) का भाव भी है. इसलिए यदि आपने मनुष्य के रूप में जन्म लिया है तो आपका धर्म बनता है कि मोक्ष के लिए गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करें। हिन्दू धर्म के अनुसार पुत्र द्वारा ही की गई अंतिम क्रिया मनुष्य के मोक्ष का मार्ग खोलती हैं. अर्थात यदि मोक्ष के सुख की कामना है तो आपको मनुष्य धर्म का निवाह भी करना होगा। गृहस्थ आश्रम से ही मोक्ष का मार्ग खोलता है. काम त्रिकोण का सुख अर्थ त्रिकोण का उत्तरोतर भाव कर्मभाव होता है. काम त्रिकोण के सुखभाव को कर्मभाव कहते हैं. मोक्ष का सुख पाने के लिए जातक गृहस्थी में पड़ता है, अब जब काम के मोह में फंस जाता है तब इसके ऋणानुबन्धनों के वशीभूत वह अर्थ त्रिकोण के भाग्य यानि कर्मभाव की और टकटकी लगाकर देखने लगता है क्योंकि अब वह उदर आपूर्ति के लिए कर्म को ही अपना धर्म मानने लगता है. और इससे ही अंतिम समय में उसके पुत्र द्वारा उसकी कपालक्रिया होती है और वो श्री हरी विष्णु जी के चरणों में गौ लोक की और प्रस्थान कर जाता है. बुध की भी दोनों राशियाँ द्विस्वभाव राशि हैं। बुद्धि और वाणी का कारक बुध जातक को अपनी चतुराई से दूसरों को जितना और अपने अनुसार चलने पर मजबूर कर है. बुध की पहली राशि है मिथुन जो काल पुरुष कुंडली के तृतीय भाव की राशि है बुध की यह राशि काम त्रिकोण की पहली राशि है. जीव जब किसी की और काम के वशीभूत आसक्त होता है. तो उसकी भौतिक सुख की कामनाएँ भी बढ़ जाती हैं. इन्ही भौतिक सुखों की आपूर्ति के लिए जातक अर्थ त्रिकोण की और अग्रसर हो जाता है. बुध की दूसरी राशि कन्या है और ये अर्थ त्रिकोण के भाग्यभाव का भाग्य होने के कारण बहुत ही महत्त्वपूर्ण राशि है. द्विस्वभाव राशि के विषय में तो सब पढ़ते हैं लेकिन देव गुरु बृहस्पति की द्विस्वभाव राशि और बुध की द्विस्वभाव राशि में भी ठीक ऐसी ही स्थिति बनती है जैसा की ऊपर वर्णन किया गया है. देव गुरु बृहस्पति ज्ञान के देवता हैं. देव गुरु बृहस्पति की मूलत्रिकोण राशि धनु काल पुरुष कुंडली की नवम राशि यानि धर्म त्रिकोण के भाग्य भाव की राशि है. गुरु ज्ञान पाकर जीव अपने कर्मों सुधर करता है और गौ लोक में जाकर प्रभु के चरणों में मोक्ष पता ही है. मोक्ष यानि धर्म त्रिकोण का सुख और देव गुरु बृहस्पति की मीन राशि। निष्कर्ष : जब जातक काम के वशीभूत हो जाता है तभी वो भौतिक सुख की आपूर्ति के लिए अर्थ की चाह करता है. परन्तु धर्म के सद्मार्ग पर चलने वाले अपने गुरु का हाथ पकड़कर चलते रहते हैं और मोक्ष को प्राप्त होते हैं. जन्म कुंडली के द्वादश भाव में जो राशि स्थित हो जातक का स्वभाव भी वैसा ही हो जाता है. मोक्ष त्रिकोण के भाग्य भाव यानि द्वादश स्थान पर मिथुन लग्न के अनुसार शुक्र की वृषभ राशि आएगी कालपुरुष कुंडली के अनुसार यह अर्थ त्रिकोण की पहली राशि है. अब यदि इस कुंडली में द्वादश भाव में शुक्र ही स्वराशि हों तो जातक मोक्ष की और अग्रसर होगा किन्तु अर्थ की कामना बनी रहेगी। |
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