विशेष (24/01/2024) 
आओ दीप जलाएँ- गीता मंजरी मिश्र(सतपथी)
निहार सखी निहार एक बार
अंतर तम के अंदर
अनहद राग सुनो सखे
बंद पलकों के भीतर
अरसों से बरसों तक
रुद्ध भाव दब-दब कर
कुछ प्रश्वास संग जब आते थे
गर्म हवा बन-बन कर,
पूछा नहीं तुमने तो कभी
कौन प्रश्न क्या उत्तर ?
     à¤°à¤®à¥‡ रमा रमण निरंतर
     à¤°à¥‹à¤®-रोम उजागर
     à¤¥à¤® गई अंधियारी आँधी
     à¤¯à¤¾,अबभी खड़े पड़ाव पर ?
आओ ज़रा एक दीप जलाएँ
हम-तुम साथ सम्हल कर
प्रेम बाती बन सुलगे जिसमें
विश्वास हो तेल की धार
अक्षुण-अदम्य सद्भावना योति
प्रज्वलित हो हर घर पर
      सुनो सखे सुनो ना ज़रा
      झांको उनके भी अंदर
      जिनके शब्द ख़ामोश रो रहे
      अक्षर सही न पाकर । 
 
   à¤—ीता मंजरी मिश्र(सतपथी)
Copyright @ 2019.