मनोरंजन (08/12/2023)
मैंने देखा है मजबूर औरत को- गीता मंजरी मिश्र (सतपथी)
मैंने देखा है मजबूर औरत को अंधविश्वास की गोली निगल जीवन के अंत तक मुस्कुराकर चलना और - समाज की फौलादी ताकतों को सारी मासूमियत की खूबसूरती के लाल नशे को गिलास में उंडेल कर गट -गट पीने की आवाज भी मैने सुना है । अक्सर कुछ नमकीन पानी अनजाने मेरे आंखों के अंदर होकर नाक तक पहुंच जाता । वह मेरी मां थी, बेटी थी, या सहेली हो सके जान पहचान वाली या मैं खुद थी पर जो भी थी यकीनन औरत ही थी । कभी आस पास पर कतरने की धार दार औजार पहली बार देखकर वापस मायके आई होगी लोहे की मोटी -मोटी बेड़ियां देख या गरम आंच से झुलस ने के डर से स्वतंत्र उड़ती चिड़िया चौखट के बाहर भागी जरूर होगी पिता की प्रतिष्ठा की सोच चौखट से बाहर का आतंकित खौफ से औरत अपनी असलियत का सही आंकलन करलिआ होगा। औरत तो औरत ही होती है पुत्र के लिए खरीदा गया मनोरंजक यंत्र कभी चमड़े के चाबुक थे निशान दिखते अब इलॉक्ट्रोनिक चाबुक बेदाग़ ज़ख़्म हाथ कल भी पुरुष का था आज भी पुरुष का । सोचती हूं शातिर शिकारियों के पंजों से निकल सम्मान के साथ समाज में जी'ने वाली पहली औरत कब पैदा होगी ?? -गीता मंजरी मिश्र (सतपथी) |
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