विशेष (03/12/2023)
गांव का आंचल
सà¥à¤¨ ज़रा, रà¥à¤•à¤¾ जा ज़रा, मà¥à¤¡à¤¼à¤•à¤° देख तो लें ज़रा कà¥à¤¯à¤¾ है तेरी संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ कà¥à¤¯à¤¾ है तेरी परंपरा मà¥à¤¡à¤¼ कर देख तो ज़रा कà¥à¤¯à¥‚ दौड़ता है पगले आधà¥à¤¨à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ के माया जाल में कà¥à¤› पल थम तो जा थोड़ा पà¥à¤°à¥€à¤¤ के मीत में डà¥à¤¬à¤•à¥€ लगा तो लें ज़रा मातृतà¥à¤µ के आंचल में दो पल शीश रखकर सà¥à¤•à¥‚न से सो जा ज़रा पिता के आशà¥à¤°à¤¯ में सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¤à¤¾ का तृपà¥à¤¤ à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ पा तो लें ज़रा सà¥à¤¨ ज़रा रà¥à¤• जा ज़रा मà¥à¤¡à¤¼à¤•à¤° देख तो लें ज़रा गांव की मिटà¥à¤Ÿà¥€ में अपनतà¥à¤µ का अहसास पा तो लें ज़रा आकाश के घà¥à¤˜à¤Ÿ में छिप तो जा ज़रा खेतों की हरियाली का नव वसंत देख तो लें ज़रा शांत बहती नदी की सरगम धà¥à¤¨ तो सà¥à¤¨ लें ज़रा हवाओ में घà¥à¤²à¥€ मीठी बोलीं गà¥à¤¨à¤—à¥à¤¨à¤¾ तो लें ज़रा दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ की मसà¥à¤¤à¥€, ओ बचपन की गलियां जी तो लें ज़रा दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ की à¤à¥‚लà¤à¥à¤²à¥ˆà¤¯à¤¾ से बाहर तो आ जा ज़रा सà¥à¤¨ जरा रà¥à¤• जा मà¥à¤¡à¤¼à¤•à¤° देख तो लें ज़रा आधà¥à¤¨à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ के रेस में दौड़ता मानव ठेहर तो जा ज़रा à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं की आतà¥à¤® पीड़ाà¤à¤‚ चीख रही सà¥à¤¨ तो लें ज़रा रिशà¥à¤¤à¥‹à¤‚ की कटी कटी डोर संà¤à¤¾à¤² तो लें ज़रा कैसा यह संताप है कैसा यह शोर मिट रही मानवता कैसा उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ का उतà¥à¤¸à¤µ पीढ़ी चली अजà¥à¤žà¤¾à¤¤ पथà¤à¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿ पथ पर बूढ़े तड़प रहे अंधकार की कोठरी में पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• जीव अकेलेपन के सनà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¥‡ में है घà¥à¤Ÿ रहा। सà¥à¤¨ ज़रा रà¥à¤• जा ज़रा, मà¥à¤¡à¤¼à¤•à¤° देख तो लें ज़रा, कà¥à¤¯à¤¾ है तेरी संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿, कà¥à¤¯à¤¾ है तेरी परंपरा। Dr.Deepali D.Mirekar Vijyapur,karanataka |
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