राष्ट्रीय (20/04/2010)
बाजार का बदलता स्वरूप
किसी ने ठीक ही कहा है कि बदलाव का नाम ही जीवन है। कोई भी चीज बदलाव से अछूता नहीं रह सकता। हम सबूत बन चुके हैं उन बदलावों के प्रमाणिकता की जो हम अपने आस पास देखते हैं। उन्हीं बदलावों में एक एक है बाजार। बदलाव एक सफर है। जी हांए यह सफर आपका और हमारा नहीं बल्कि बाजार का है। बाजारए जिसके स्वरूप में अब परिवर्तन आ गये है। अब बाजार बाजार न रहकर बड़े बड़े मॉल में परिवर्तित हो गये हैं। प्रत्येक गांव में आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हाट लगाये जाते है। यह परंपरा आज भी गांवों में बरकरार है। हाट में जाने वाले व्यक्तियों के चेहरे पर ऐसी खुशी झलकती है जो दूसरो को उन्हीं के साथ हाट में जाने के लिए उत्सुक करती है। हाट में मिलने वाली चीजें पारंपरिक होती हैं जो कुटीर उद्योग का एक रूप है। अगर हाट में खाने की बात की जाये तो आज भी मुह में पानी आ जाता है और शायद ही कोई हो जिसने भेलपूरी और चाट के स्वाद को नहीं चखा हो। हाट गांव की सभ्यता और संस्कति को दर्शाता है। जिसे शहर में संजोने का प्रयास भी किया गया है। कई शहरों में यह प्रयास सफल भी रहा। उसी का एक उदाहरण दिल्ली का दिल्ली हाट। दिल्ली हाट में गांव जैसा ही अनुभव आप शहर में महसूस करेंगे। हाट शब्द केवल खरीददारी तक ही सीमित न रहकर उसके साथ गांवों की सभ्यताए संस्कृति और रीति रिवाजों की झलक भी देखने को मिलती है। और आप कैसे भूल सकते हैं वह लोक नृत्यए लोक गीत और कठपुतलियों का खेलए जो आज भी हमें खुश करने के लिए प्रर्याप्त हैए यह सब चीजें शहर में बहुत कम देखने को मिलती है। बाजार के स्वरूप में परिवर्तन आया है। उसकी मौलिकता में काफी बदलाव आये हैं। क्योंकि अब बाजार बाजार न रहकर मार्केट का रूप ले चुका है। मार्केट शब्द आज के माॅडर्न समाज की मानसिकता को दर्शाता है। बाजार से मार्केट में तब्दील होने में कुछ दशक तो लगे ही हैं। साथ ही साथ खरीददारी के मायने में भी बदलाव आये हैं। मार्केट बाजार का विशाल रूप हैए जहां हर चीज आसानी से उपलब्ध होती है व खाने की बात करें तो उनमें कई प्रकार के जायके मिलेंगे। चाहे वह देशी हो या विदेशी। चाट पापड़ी आपके दिल को मचलाने के लिए आसानी से उपलब्ध होंगी और जो नहीं मिलेगी वह है गांव की सभ्यता आधारित रोशनीए सजावट और खरीददारी का अंदाज। मार्केट एक तरह से भूल भुलैया है जो अपने आकर्षण से सबको भ्रमित करती है और आप निश्चित तौर से फैसला लेने में असमर्थ होंगे कि क्या लूं और क्या न लूं। जैसे जैसे समय बदला है वैसे.वैसे मनुष्य के पसंद में भी बदलाव आया है। अब मनुष्य ब्राड का शौकीन हो गया है। जहां पहले वह कुछ भी पहन लेता था आज इंसान ब्रांडेड प्रोडक्ट खरीदना चाहता है। मनुष्य हमेशा महत्वाकांक्षी रहा है। उसकी महत्वाकाक्षा ने ही मार्केट को नया रूप दिया है। जी हां यह परिवर्तन और कुछ नहीं मार्केट से माॅल का है। उची इमारतेए लिफ्ट जो मनुष्य की खुशी को लिफ्ट कराता है। चारो ओर चकाचैंध रोशनीं। माॅल में आपके मनोरंजन के लिए सिनेमा घरए डीजेए अनेक प्रकार के शो रूम यहां तक की बच्चोंए बुढ़े व युवाओं के लिए मनोरंजन व खाने.पीने की सारी सुविधांए उपलब्ध हैं। मॉल में आपको अपनी चाहत की सारी चीजें आसानी से एक ही छत के नीचे उपलब्ध हो जाएंगी। माने तो खुशी को एक ही स्थान में सजोकर रख दिया हैए जो कि खरीददारी का विकसित रूप है। अब हमारा सफर हाट की परंपरा से लेकर मॉल की चकाचैंध तक पहुंच गया है। जहां प्रश्न उठना लाजिमी है कि आखिर है क्या है खरीददारी का बेहतर रूप। हाट या माॅलघ् यदि हमे इसका उत्तर चाहिए तो याद करना होगा अंग्रेजी के महान लेखक विलियम सेक्सपीयर की कही बात कि ष् जो तुमने देखा वह खुबसूरत नहींए तुमने जिस नजर से देखा वह नजर खुबसूरत है। फिर आपको अपना जबाव खुद व खुद मिल जाएगा। .राहुल खान |
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