अन्तरराष्ट्रीय (02/12/2022)
चीन की अनावश्यक चिंता- डॉ. वेदप्रताप वैदिक
भारत,चीन और अमेरिका के बीच आजकल जो कहा-सुनी चल रही है, वह बहुत मजेदार है। उसके तरह-तरह के अर्थ लगाए जा सकते हैं। चीनी सरकार के प्रवक्ता ने एक बयान देकर कहा है कि उत्तराखंड में भारत-चीन सीमा पर अमेरिकी और भारतीय सेना का जो ‘युद्धाभ्यास’ चल रहा है, वह बिल्कुल अनुचित है और वह 1993 और 1996 के भारत-चीन समझौतों का सरासर उल्लंघन है। सच्चाई तो यह है कि मई 2020 में चीन ने गलवान-क्षेत्र में अपने सैनिक भेजकर ही उक्त समझौतों का उल्लंघन कर दिया था। वास्तव में भारत-अमेरिका का यह युद्धाभ्यास चीन-विरोधी हथकंडा नहीं है। दोनों राष्ट्र इस तरह के कई युद्धाभ्यास जगह-जगह कर चुके हैं। यह चीन को धमकाने का कोई पैंतरा भी नहीं है। यह तो वास्तव में हिमालय-क्षेत्रों में अचानक आनेवाले भूंकप, बाढ़, पहाड़ों की टूटन, जमीन फटने जैसी विपत्तियों का सामना करने का पूर्वाभ्यास है। प्राकृतिक संकट से ग्रस्त लोगों की मदद के लिए अस्पताल तुरंत कैसे खड़े किए जाएं, हेलिपेड कैसे बनाए जाएं, पुल और सड़कें आनन-फानन कैसे तैयार किए जाएं, और घायलों की जीवन-रक्षा कैसे की जाए- इन सब कामों का अभ्यास ये दोनों सेनाएं मिलकर कर रही हैं। यह सब क्रिया-कर्म चीन की सीमा से लगभग 100 मील दूर भारत की सीमा में हो रहा है लेकिन लगता है कि चीन इसीलिए चिढ़ा हुआ है कि अमेरिका के साथ उसके संबंध आजकल काफी कटुताभरे हो गए हैं। यह तथ्य चीनी प्रवक्ता के इस कथन से भी सत्य साबित होता है कि अमेरिका की कोशिश यही है कि भारत और चीन के रिश्तों में बिगाड़ हो जाए। चीन नहीं चाहता कि उसके पड़ौसी भारत के साथ उसके रिश्ते खराब हों। यदि सचमुच ऐसा है तो चीनी शासकों से पूछा जाना चाहिए कि हिंदमहासागर क्षेत्र में चीन अपने जंगी जहाज क्यों अड़ाए रखता है? वह श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार और नेपाल में भी अपना सामरिक वर्चस्व कायम करने की कोशिश क्यों कर रहा है? पाकिस्तान तो चीनी मदद के दम पर ही भारत पर खम ठोकता रहता है। क्या वजह है कि चीन का 2021 का फौजी बजट, जो कि 209 बिलियन डाॅलर का था, वह भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और ताइवान के कुल बजटों के जोड़ से भी ज्यादा था। चीन का एक तरफ यह कहना कि वह भारत से अपने संबंध अच्छा बनाना चाहता है और दूसरी तरफ वह अपने अमेरिका-विरोधी रवैए को बीच में घसीट लाता है। भारत की नीति तो यह है कि वह अमेरिका और चीन तथा अमेरिका और रूस के झगड़ों में तटस्थ बना रहता है। न तो वह चीन-विरोधी और न ही वह रूस-विरोधी बयानों का समर्थन करता है। अमेरिका से उसके द्विपक्षीय संबंध शुद्ध अपने दम पर हैं। इसीलिए चीन का चिंतित होना अनावश्यक है। |
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