राष्ट्रीय (13/04/2015) 
अच्छी फसल की कम कीमत तय करके किसानोंं को लूट रही सरकार
पिछले कई दशकों से देश के किसानों से सरकार द्वारा कम मूल्य में अच्छी क्वालटी की फसलें खरीद करके किसानों को मुर्ख बनाया जा रहा है। यह आरोप लगाये भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्र सलाहकार अजीत सिंह हाबडी ने। उन्होंने कहा कि सरकार के द्वारा फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाता है। जिसका मतलब होता है कम से कम मूल्य। यानि कि इस मूल्य से कम किसान की फसल नही बिकेगी, बेशक से वह कितनी ही खराब न हो। इसके बाद यदि फसल की क्वालटी अच्छी हो तो वह अच्छे दामों पर बिकनी चाहिऐ, परन्तु सरकार के द्वारा न्यूनतम मूल्य के तय करने के बाद उसको खरीद करने के माप दण्ड़ भी तय किये जाते रहे है। जो मानक तय किये जाते रहे है वे अच्छी किस्म के होते है। सरकार द्वारा किर इस मूल्य को अधिकतम मूल्य क्यों नही घोषित किया जाता है।
क्योंकि इस मूल्य से अधिक पर तो सरकार खरीद नही करती। इतना जरूर है कि इससे कम मूल्य पर प्राईवेट खरीद दार किसानों की फसल को बिना कागजो में दर्ज किये खरीद करते है। उन्होंने कहा कि इस वर्ष 12 प्रतिशत नमी वाली गेहूं का दाम 1450 रुपये तय किये हुये है। जबकि किसान इस से भी सुखी फसल यानि 10 प्रतिशत नमी की मंडियों में लेकर आते है। इतनी कम नमी की फसल के दाम किसानों को ज्यादा क्यों नही दिये जाते? सरकार किसानों को बताती है समर्थन मूल्य, परन्तु घोषित करती है न्यूनतम समर्थन मूल्य। अत: सरकार किसानों को समझाये की न्यूनतम की परिभाषा क्या होती है। प्राईवेट खरीददार किसान को फसल के खरीदते समय स्पष्ट कहते है कि कम से कम इतना व ज्यादा से ज्यादा इतना मूल्य फसल का दिया जायेगा। फिर सरकार द्वारा ऐसा क्यों नही किया जाता है। किसान भी बिना समझ के इस मूल्य को अधिक मूल्य मान लेते है। उन्होंने कहा कि अब वे समझ गये है कि किसानों को केसे लूटा जा रहा है। भाकियू इस सरकार के द्वारा कि जा रही लूट से प्रदेश ही नही अपितु देश के किसानों को अवगत करवायेगी। सरकार को चाहिये कि वह फसल के मूल्य तय करते समय कम से कम व ज्यादा से ज्यादा और नमी के प्रतिशत के हिसाब से मूल्य घोषित करे।
राजकुमार अग्रवाल
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