सिवनी। सरकारी आंकड़े चाहे
जो कहें पर जमीनी हकीकत यह है कि पक्के शौचालयों के निर्माण में सिवनी जिला पिछड़ता
नजर आ रहा है। जिला पंचायत में अधिकारियों और कर्मचारियों का रवैया इस कदर ढुलमुल
है कि ग्रामीणों को खुले में शौच से मुक्ति के लिए चलाए जा रहे ‘स्वच्छ भारत मिशन अभियान‘ की परतें उधड़ने लगी हैं। बताया जाता है कि अनेक ग्राम
पंचायतों में शौचालय निर्माण के लिए मिलने वाले अनुदान को सरपंच सचिवों द्वारा
डकार लिया गया है। जिले के गांव की तस्वीर बदलने की जिम्मेदारी अधिकारियों को
सौंपी गई थी। लेकिन वे इसमें पूरी तरह असफल ही साबित हुए। हैरानी की बात तो यह है
कि अधिकारी अपने आसपास के गांवों में भी शत प्रतिशत शौचालय का निर्माण नहीं करवा
सके हैं। जिला पंचायत के सूत्रों ने
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि अप्रैल से दिसम्बर 2014 तक जिले को 23093 व्यक्तिगत शौचालय निर्माण का
लक्ष्य मिला था। लेकिन नौ महीने में अधिकारी महज 5,483 शौचालय बनवा सके। राज्य जल एवं स्वच्छता मिशन के अधिकारियों ने इस
दौरान प्रगति के लिए उचित कार्यवाही करने के निर्देश दिए थे। इसके बाद भी स्वच्छता मिशन का
मैदानी अमला लक्ष्य हासिल करने में असफल रहा। जमीनी हालात ये हैं कि दिए गए लक्ष्य
को महज बीस फीसदी ही प्राप्त किया जा सका है। आलम यह है कि जिला मुख्यालय से सटे
अनेक ग्रामों में ही ग्रामीण और महिलाएं खुलें में शौच करने को मजबूर हैं। जिला पंचायत कार्यालय ग्राम
पंचायत मुख्यालय बींझावाड़ा में स्थापित होने के बाद भी ग्राम पंचायत बींझावाड़ा में
ही अनेक घरों के लिए खुले में शौच करने के लिए मजबूर हैं। यह आलम तब है जबकि प्रति
दिन अधिकारी कर्मचारी इस गांव से होकर कार्यालय जाते आते हैं। सालों से विभिन्न
योजनाएं स्वच्छता के लिए चलाई जा रही हैं, लेकिन परिणाम सिफर हैं। ऐसे में
जिले के सुदूर क्षेत्रों के गांव की क्या स्थिति होगी इसका अंदाजा लगाना सहज है।
स्वच्छ भारत मिशन से पहले निर्मल
भारत व मर्यादा अभियान के तहत शौचालय निर्माण का काम कराया गया है। लेकिन पर्याप्त
राशि नहीं होने के कारण लोगों ने इसमें रुचि नहीं दिखाई योजना के तहत निर्मल भारत
से 4600 तथा मर्यादा के तहत 4400 रुपए का अनुदान हितग्राही को
दिया जाता था। जबकि 900 हितग्राही को स्वयं अंशदान देकर
शौचालय का निर्माण कराता था। सैकड़ों ग्राम पंचायतों में ग्रामीणों से सरपंच-सचिव
ने अंशदान तो लिया, लेकिन निर्माण नहीं कराया।
अंशदान में हुए बंदरबांट की शिकायत के बाद भी संबंधितों की सुनवाई नहीं की गई। महेश रावलानी |